
श्री झा ने भारतीय त्रिस्तरीय जनप्रतिनिधि व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बिहार के वैशाली से प्रतिनिधि शासन व्यवस्था की शुरुआत हुई थी मगर दुर्भाग्यवश आज भी त्रिस्तरीय व्यवस्था का तीसरा स्तर राज्य सरकार की उपेक्षा का शिकार है।
राजनीति गंदी क्यों है ?
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स्पष्टवादी श्री झा इस मुद्दे पर अपने विचार रखते हुए कहा कि जब देश आजाद हुआ था तो जन प्रतिनिधियों को वेतन का प्रावधान नहीं था। आज एक सांसद को वेतन तथा अन्य भत्तों के तौर पर 5 लाख तक की राशि प्रदान की जाती है जबकि एक विधायक को इसी तरह 3 लाख की राशि का प्रावधान है। लेकिन पंचायत स्तर पर मुखिया को बिहार सरकार में मात्र 2500/- वेतन के तौर पर दिया जाता है। गौरतलब बात है कि पंचायत के सचिव का वेतन 35000-40000 तक होता है। जिला स्तर पर डीडीसी को 70,000 से 80,000 वेतन मिलता है जबकि जिला परिषद अध्यक्ष को 15000/- का मानदेय प्राप्त होता है। इसके अलावे श्री झा ने पंचायत स्तर के सिविल कार्यों में कॉन्ट्रेक्टर के प्रॉफिट का कोई प्रावधान नहीं होने पर भी असंतोष जाहिर किया क्योंकि इससे कार्यों की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। श्री झा के अनुसार उपरोक्त कारणों से पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
ग्रामसभा की शक्ति
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icangovern के जनरल सेक्रेटरी श्री तिलकनाथ जी के एक प्रश्न के जबाब में माननीय मुखिया श्री उज्जवल झा ग्रामसभा की बढ़ती अप्रसांगिकता पर भी दुःख प्रगट किया। ध्यातव्य है कि किसी गाँव के 18 साल से अधिक उम्र के सभी नागरिक ग्रामसभा के सदस्य होते हैं। मगर लोगों द्वारा ग्रामसभा की बैठकों में भागीदारी नगण्य है। साथ ही श्री झा ने कहा कि गाँव में आगजनी से कभी किसी गरीब का घर जल जाता है तो ग्राम सभा को ये अधिकार होना चाहिए कि उसकी अनुशंसा के पश्चात पीड़ित को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत लाभ दिला पाए। मगर राज्य सरकारों से उपेक्षित ग्राम सभा पुर्णत: अप्रासंगिक हो चुका है।
गाँव में शिक्षा की स्थिति
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icangovern के राष्ट्रीय संयोजक और बीबीसी के पूर्व पत्रकार श्री तिलक झा के प्रश्न का उत्तर देते हुए मुखिया जी कहा कि मुखिया जी के व्यक्तिगत प्रयासों से रामभद्रपुर मध्यविद्यालय को शिक्षा मंत्रालय बिहार द्वारा उच्चविद्यालय की मान्यता प्रदान की गई जिससे सैकड़ों बच्चों को मदद मिली। मगर साथ ही मुखिया जी ने कहा कि शिक्षकों को राज्य सरकार द्वारा शिक्षणेत्तर कार्यों की इतनी जिम्मेदारी दी जाती है कि मुख्य शिक्षण गतिविधियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर कोरोना से निपटने के लिए शिक्षकों को कोरोना कर्मी बना दिया गया जबकि यह कार्य वार्ड सदस्यों द्वारा करवाया जाना चाहिए था।
एक अन्य वरिष्ठ सदस्य श्री मदन मोहन जी के प्रश्न के उत्तर में मुखिया जी ने कहा कि राज्य सरकार को पंचायतों को वोट बैंक राजनीति का माध्यम नहीं बनाना चाहिए।
सीमित संसाधनों में बेहतर प्रबंधन कैसे हो
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वरिष्ठ सदस्य तिलकनाथ जी के द्वारा पूछे गए प्रश्न के आलोक में माननीय मुखिया जी ने कहा कि एक पंचायत सचिव या लेखपाल या किसान मित्र या रोजगार सेवक या राजस्व कर्मी को तीन या चार पंचायतों का प्रभार दे दिया जाता है।इससे पंचायत की योजनाओं के क्रियान्वयन पर विपरीत असर पड़ता है। जिला प्रशासन को चाहिए कि पंचायत कर्मियों की ड्यूटी का रोस्टर बनवाये ताकि निश्चित दिन पर पंचायत कर्मियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जा सके।
अपने विचारों को निष्पक्षता और स्पष्टवादिता से रखने के लिए माननीय मुखिया जी श्री उज्जवल झा की सदस्यों ने भूरी भूरी प्रशंसा की। सम्मेलन में श्री कुणाल भास्कर, श्री अमित सिन्हा, श्री आशीष झा, श्री राजीव कुमार, श्री विशम्भर जी, श्री जयंत वत्स, श्री प्रियदर्शन कुमार, श्री सुशील जी, श्री कुमार सुन्दरम आदि सदस्यों ने भी शिरकत की।