बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
पटना:
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की दो मामलों में काफ़ी फ़ज़ीहत हुई है. एक कोरोना वायरस (Coronavirus) में टेस्टिंग कम और अस्पतालों के ख़स्ताहाल व्यवस्था के जो वीडियो वायरल हुए उससे उनकी पूरे देश में सुशासन बाबू की छवि धूमिल हुई और दूसरा फ़िल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत (Sushant Singh Rajput) के मुंबई में आत्महत्या के बाद उन्होंने उनके परिवार वालों की खोज खबर भी नहीं ली. इससे उनके अपने समर्थक मायूस दिखे.
यह भी पढ़ें
लेकिन नीतीश कुमार दोनो फ़्रंट पर अब लग रहा है कि डैमेज कंट्रोल करने में लगे हैं. एक ओर कोरोना से निबटने के लिए उन्होंने बिहार के स्वास्थ्य विभाग में एक नया तेजतर्रार प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत नियुक्त किया है वहीं साथ में उन्होंने कई और अधिकारियों को स्वास्थ्य विभाग में प्रतिनियुक्त किया है. माना जा रहा है कि अब विभाग में स्वास्थ्य मंत्री और प्रधान सचिव में ख़ुद से कोविड वार्ड का जायज़ा लेने की होड़ लगी है.
सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे पर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और दिल्ली से बैठकर नीतीश कुमार के साथ सत्ता में सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ज़्यादा आक्रामक रुख अख़्तियार किए हुए हैं. दोनों नीतीश को भी घेरने से बाज़ नहीं आते. जनता दल यूनाइटेड के नेताओं की मानें तो सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की जो कहानी परत दर परत सामने आ रही है उससे बिहार के युवा वर्ग और राजपूत समाज के लोगों में काफ़ी आक्रोश व्याप्त है. नीतीश कुमार शुरू से उनके परिवार से मिलने, शोक संवेदना व्यक्त करने भी नहीं गए. यह उनके समर्थकों के गले नहीं उतरा. इसलिए परिवार वालों ने मंत्री संजय झा से संपर्क किया क्योंकि उन्हें लग रहा है कि मुंबई पुलिस का जांच सही दिशा में नहीं जा रही है.
नीतीश कुमार ने प्रत्यय अमृत को ही क्यों दिया स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा?
अब नीतीश कुमार ने बिना कोई मौका खोए तुरंत सुशांत के परिवार वालों को ये आश्वासन दिया कि सरकार उनके साथ है और उनको सब तरह से सहयोग करेगी. यही कारण है कि पटना में जैसे ही सुशांत के पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई तो बिहार पुलिस की टीम तुरंत मुंबई जांच के लिए रवाना हो गई. जब बात सर्वोच्च न्यायालय में रिया चक्रवर्ती की याचिका का विरोध करने की हुई तब भी बिहार सरकार ने वरिष्ठ वक़ील मुकुल रोहतगी से बहस कराने की घोषणा कर दी. नीतीश कहीं से इस मामले में अब पीछे नहीं दिखना चाहते हैं. इसलिए वे फ़ैसले लेने में देरी नहीं करते. उन्हें मालूम है कि चुनावी साल में इस मामले में परिवार वालों से दूरी उनके लिए राजनीतिक रूप से महंगी साबित हो सकती थी.