सिंधु जल समझौते में बदलाव के प्रधानमंत्री के फैसले के बाद अब इसे लागू करने की कवायद शुरू हो गयी है. जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पश्चिमी तीन नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब में करीब 35 लाख एकड़ फीट की स्टोरेज कैपेसिटी तैयार करने की क्षमता है. इनसे करीब 18000 मेगावाट बिजली पैदा हो सकती है. इसके लिए भारत को नए बांध बनाने होंगे. पहले से तय हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर काम तेज़ करना होगा.
पूर्व विदेश सचिव शशांक मानते हैं कि प्रधानमंत्री के फैसले को लागू करने में लंबा वक्त लगेगा. लेकिन अब भारत मज़बूती से अपने हक का इस्तेमाल कर सकेगा. उन्होंने कहा, ‘अब तक पाकिस्तान इन नदियों पर भारत के हाइड्रो प्रोजेक्टेस को इंटरनेशनल कोर्ट में वीटो करता रहा है. जम्मू-कश्मीर के विकास को रोकता रहा है. लेकिन अब भारत अपने अधिकार का बेहतर इस्तेमाल कर सकेगा.’
तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने से पहले झेलम नदी से गाद हटाने का काम करना होगा ताकि झेलम में पानी की गहराई इतनी हो जिससे जहाजों की आवाजाही मुमकिन हो. राहत की बात ये है कि पीडीपी अब खुल कर केंद्र के फैसले के साथ खड़ी है. सत्ताधारी पीडीपी के सांसद मीर मोहम्मद फयाज़ ने एनडीटीवी से कहा, ‘सिंधु जल समझौते से सबसे ज़्यादा नुकसान भारत को हुआ है. मैंने ये सवाल संसद में भी उठाया है. इससे जम्मू-कश्मीर के किसानों का नुकसान हो रहा है. इसे बदलना बेहद ज़रूरी है.’
सरकार को अब इस बात का एहसास है कि पाकिस्तान की ओर बहने वाली नदियों के पानी का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया पेचीदा है और इनके बेहतर इस्तेमाल के लिए भारत के काफी मशक्कत करनी होगी. इन नदियों पर बांध बनाने में बरसों लगेंगे.