आस्था एवं धर्म से लोग डरते हैं और उतना ही ज्यादा विश्वास करते हैं। हमारे देश में हर युग में चाहे शासन किसी का भी रहा हो कथित साधु संतों, मुल्ला-मौलवियों और नेताओं के लोग चक्कर लगाते हैं और यह तीनों मिलकर भोली-भाली जनता का भोग चढ़ाते हैं। बाबाओं को लेकर भारतीय जनता का प्रेम नया नहीं है।
कभी किसी बाबा की धूम रहती है तो कभी किसी बाबा की। जब तक जनता की सोच नहीं बदलेंगी तब तक नित्य नये बाबा कुकुरमुत्ते की तरह पनपते ही रहेंगे। किस्मत बनाने वाले, जन्नत का सपना दिखाने वाले भक्तों के बीच चमत्कारी शक्तियों का दावा करने वाले बाबाजी स्वयं बड़े से सिंहासन पर विराजित रहते हैं भक्तों ने भी कभी स्वयं के अंदर झांकने की कोशिश नहीं की तभी तो यह दुर्दशा है। 21वीं सदी में हम जी रहे हैं मानव समाज सभ्य और ज्ञानशील होने का दावा करता है। उसी अनुपात में हम धर्मभीरु अर्थात कट्टर व असंवेदनशील होते जा रहे हैं। नौकरी, मुकदमें में जीत आदि के नाम पर ठगी का धंधा शायद युगों से चला आ रहा है और मानव खुद को ठगाता जा रहा है। एक बहुत पुरानी कहावत है ‘या ठगाये रोगी…. या ठगाये भोगी’ आज के समाज में तो दोनों ही दिख रहे हैं। आस्था या अंधविश्वास के मक़ड़जाल में फंसे बिना मानव समाज निश्चित रूप से कह सकता है कि बाबाओं ने, मुल्लाओं ने, मौलवियों ने अपनी इंडस्ट्री लगा रखी है। आस्था और धर्म से लोग डरते हैं उतना ही विश्वास भी करते हैं बस इसी कमजोरी का फायदा ये कथित धर्मगुरू उठाते हैं। धर्म के नाम पर धर्मगुरूओं के पास लाखों -करोड़ों की बेनामी संपत्ति जमा होती जा रही है।
यही अंधश्रद्धा भारत की जनता को गरीब से और गरीब और धर्मगुरूओं को अमीर से और अमीर बनाने का काम कर रही है। ढोंगी-पाखंडी, हत्यारे और बलात्कारी बाबा समाज में अपना झंडा़, गाड़ लेते हैं। अपने प्रचार के लिए फिल्में बनाते हैं। शारीरिक सुख-सुविधाओं को प्राथमिकता देते हैं।
क्या यही वैराग्य होता है? क्या इसी को साधुत्व कहते है? हाल ही में जाकिर नाईक नाम के कथित धार्मिक गुरू ने अपने भाषणों से और अपने आॅन एयर चैनल पीस टीवी से इतनी अधिक धार्मिक भावनाएं भड़कायी, जिससे 18 से 21 उम्र के नौजवान अपना रास्ता भटककर आतंक के रास्ते पर चले गये जिसमें हिंसा के अलावा नफरत भी भरी पड़ी थी। अब जानकारी में आया है कि यह चैनल कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं था। जो धर्मगुरू अवैध चैनल चलाता है धार्मिक भावनाएं भड़काता है तथा जकात के नाम पर अरबों का फंड इकट्ठा करता है और ओसामा बिन लादेन को आतंकी मानने से इंकार करता है उसकी खुद की मानसिक स्थिति क्या होगी? भारत ने विश्व पटल पर जो विश्वगुरू की छाप छोड़ी आज जनता की अंधश्रद्धा व कायरता ने तथा धर्म ढोंगी, पाखंडी हत्यारे, और जेहादी पैदा करने वाले धर्मगुरूओं के हाथों नाश होकर रहेगी। इन धर्मगुरुओं को क्या साधू-संत कहा जाना चाहिए? यह उन महापुरूषों का अपमान नहीं होगा, जिन्होंने मानव कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था? धर्मगुरुओं का काम निस्वार्थ भाव से मनुष्य का कल्याण मार्ग प्रशस्त करना रहा है न कि जनता की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर टैक्स फ्री कमाई को गैर कानूनी काम में लगाने का? जाकिर नाईक अपने धर्म को सभी धर्मों से ऊपर बताते हैं। लगभग यही हाल बाकी धर्मगुरुओं का है जो इन्सान बनाने की शिक्षा कम और इन्सानों से लड़वाने की शिक्षा ज्यादा दे रहे है।
अमीर लोगों से पैसे की फंडिंग करते हैं और गरीब, अशिक्षित लोगों को आत्मघाती या श्रावक, सेवादार बनाते हैं। हमारे देश में न जाने कितने ही ऐसे कथित धर्म गुरू गली-गली धूम रहे हैं यह वतन से गद्दारी नहीं तो और क्या है? अभिभावकों से निवेदन है कि अगर आपका बच्चा कुछ ज्यादा ही धार्मिक बन रहा है तो उस पर नजर रखें कहीं वह कल सेवक, जेहादी या आतंकवादी न बन जाये? यह हमारे देश की जनता की कठोर नियति है कि हम ऐसे धर्म गुरुओं को शह देते हैं जो धर्म को धर्म न मानकर अपना धंधा मानते हैं। हमारे आने वाली पीढ़ी को जो ऐसे ही थोड़ी उलझी हुई है उसे और उलझा कर हमसे दूर न कर दे.. .. समय रहते चेतने का वक्त है….. अन्यथा पता नहीं कब…. किसका….. बच्चा इन बाबाओं के हत्थे चढ़ जायेगा. .. और हाथ में कुछ नहीं बचेगा। जनता से निवेदन है कि अगर आप इन धार्मिकों के गुलाम बनोगे तो यह आपको कुत्ता समझकर लात मारेंगे और नहीं बनोगे तो 21वीं सदी में अपना उचित स्थान बना पाओगे। महिलाओं से भी निवेदन है कि वह अपने सुरक्षा का खयाल खुद रखे न की हर बात का रोना- धोना लेकर समाधान हेतु इन ढोंगियों के यहंा पहुंच जायें। हमारे देश के लोकतंत्र में चारित्रिक पतन रोकने के लिए शीर्ष पर बैठे हुए नेताओं और धर्मगुरुओं की धुलाई एवं सिंकाई बहुत जरूरी है। एक बात स्पष्ट है चाहे कितना ही बुद्धिजीवी क्यों न हो उसका दिमाग कहीं न कहीं जाकर भ्रमित तो हो ही जाता है, जिसका फायदा यह कथित धर्मगुरु लोग उठाते हैं।