नई दिल्ली में आयोजित 63वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार एवं दादा साहेब फाल्के पुरस्कार में उत्तर प्रदेश को भारत गणराज्य के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने “मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट” का अवार्ड प्रदान किया जाना विशेष संदर्भो वाला है.देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश अपने भौगोलिक अवस्थिति की वजह से निवेश सम्बन्धी समस्याओं से लगातार जूझता रहता है.ऐसे में प्रदेश में स्थित अनेक सांस्कृतिक और पर्यटकीय दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थलों को फिल्मों के अनुकूल उपयोग में लाने की नीति बनाकर छवि और निवेश की दिशा में अत्यंत कम समय में की गयी पहल तात्कालिक और दूरगामी दृष्टि से भी प्रशंसनीय है. सिनेमा और साहित्य का समाज से गहरा नाता है.साहित्य के साथ-साथ सिनेमा भी इसका आईना है.आज की फिल्मों में सामाजिक समस्या की गहरी पड़ताल को देखते हुए अखिलेश सरकार यूपी में सिनेमा की भी उपजाऊ जमीन तैयार करना चाह रही है. इसके सहारे एक तीर से दो निशाना साधने की कवायद जारी है.एक तो फिल्मों प्रगतिवादी मुद्दों को दिखा लोगों में जड़ कर चुकी सोच को ध्वस्त करना.जबकि दूसरा फिल्मों की शूटिंग के प्रति अनुकूल माहौल तैयार कर रोजगार की अतिरिक्त संभावनाएं पैदा करना है.हाल की हिंदी फिल्मों ने तेजी से हिंदी पट्टी का रुख किया है. कहानी,लोकेशन व अन्य सभी तरीके से हिंदी इलाकों का मिजाज फिल्मों में दिखने लगा है.ऐसे में यूपी के पास उसे भुनाने का बेहतर मौका मौजूद है.
बीते सालों में तेवर,दोजख,बुलेट राजा,डेढ़ इश्किया,जानिसार,यमला पगला दीवाना,हासिल,ओंकारा,यंगिस्तान, ग़दर जैसी फिल्मों ने यूपी के प्रमुख स्थलों का फिल्मों के बहाने देश दुनिया से परिचय करवाया.इसी प्रदेश ने बालीवुड को कई महान कलाकार दिए,जिनकी प्रतिभा का लोहा समूचे विश्व ने माना है.इस फेहरिस्त में महानायक अमिताभ बच्चन,नसीरुद्दीन शाह,जावेद अख्तर,राजबब्बर,प्रियंका चोपड़ा,लारा दत्ता,मुज्जफर अली,रवीन्द्र जैन,अनुराग कश्यप,तिग्मांशु धूलिया,सुधीर मिश्रा,राजू श्रीवास्तव सहित भोजपुरी सिनेमा के रवि किशन जैसे कई प्रमुख चेहेरे शामिल है.नदिया के पार से लेकर अनेक कालजयी फिल्मों और कलाकारों के यूपी से जुड़े होने का स्वर्णिम इतिहास रहा है.
सूबे की इसी समृद्धिशाली विरासत के महत्व और भविष्यगत संभावनाओं को देखते हुए युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिल्म-सिनेमा के पुनरूद्धार की कवायद को शुरू किया.जिसमें फिल्म नीति,फिल्म बन्धु और फिल्म सिटी की योजना शामिल है.इसी क्रम में यूपी में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए दो फिल्म सिटी जिसमें एक फिल्म सिटी आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे पर दूसरा ट्रांस गंगा हाईटेक सिटी पोरियोजना उन्नाव में विकसित किये जाने की योजना कार्यशील है.650 करोड़ रूपये के निवेश से बन रहे इस फिल्म सिटी से लगभग दस हजार लोगों को रोजगार मिलने की बात कही जा रही है.नई फिल्म नीति का सबसे अधिक फायदा बड़ी संख्या में फिल्म निर्माताओं का प्रदेश में फ़िल्में बनाने के लिए आकर्षित होना है.जिसकी झलक वर्तमान में लगभग तीस फिल्मों की यहाँ हो रही शूटिंग से मिल रही है.इतना ही नही यूपी में शूट हुयी फिल्म जानिसार को सवा दो करोड़,तेवर को दो करोड़ और दोजख को साठ लाख के लगभग की प्रोत्साहन राशि देकर राजनैतिक कथनी-करनी के विभेद को समाप्त किया गया है.साथ ही यूपी में फिल्म शूट करने पर दो करोड़ की आर्थिक सहायता एवं राज्य सरकार के कलाकारों द्वारा भूमिका निभाए गये फिल्म को पच्चीस लाख की अतिरिक्त सहायता का प्रावधान किया गया है.फिल्म बन्धु में भी उद्योग बन्धु की तर्ज पर सिंगल विंडो व्यवस्था लागू करने की बात अच्छा संकेतक है.इसके अलावा फिल्म निर्माताओं के साथ समन्वय के लिए प्रत्येक जनपद में एक नोडल अधिकारी नामित करना फिल्म निर्माण के लिए स्थानीय स्तर पर होने वाली समस्याओं को दूर करने में सहायक कदम है.जो योजना की सफलता में सहयोगी कदम साबित हो सकती है.
उत्तर प्रदेश में फिल्में शूट होने से कई फायदे हैं.यहां के लोगों को इसके माध्यम से बड़ी तादाद में रोजगार सृजन होगा.वही फिल्मों में यूपी पृष्ठभूमि में रहने से देश-विदेश में आज के उत्तर प्रदेश के दर्शन होंगे.लोकल और ग्लोबल पटल पर यूपी पुनर्जीवित होगी. फिल्म निर्माता तो आएंगे ही, उद्योगपतियों के मन में भी प्रदेश की उम्दा छवि निर्मित होगी.आज के दौर में फिल्म-सिनेमा के प्रभाव और महत्व की बात किसी से छिपी नही है.किसी भी क्षेत्र में नये अवसर उत्पन्न करने में इसके योगदान को भुलाया नही जा सकता.सामाजिक समस्या से लेकर विज्ञान-तकनीकी सहित जीवन से जुड़ा कोई भी विषय फिल्म जगत से अछूता नही है.इसलिए किसी समाज के समकालीन परिवेश को समझने में फिल्मों का महत्वपूर्ण योगदान है.पहले जहाँ यह सिर्फ मनोरंजन का साधन हुआ करती थी, वहीं आज विकास के लिए जरूरी निवेश के साथ ही किसी विषय विशेष पर जनमत तैयार करने में भी उपयोगी दिखाई दे रही है. इन्ही संभावनाओं को देखते हुए सरकारों का झुकाव फिल्म जगत की ओर तेजी से हुआ है.जिसके लिए केंद्र सरकार सहित राज्य सरकारें फिल्म नीति के माध्यम से फिल्मों के प्रोत्साहन और संरक्षण की दिशा में गंभीर कार्य कर रही है.पिछले वर्ष देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी फिल्म बन्धु के माध्यम से फिल्म निर्माण के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने से लेकर यहाँ से जुड़े स्थापित कलाकारों एवं इस विधा से जुड़े उभरते प्रतिभाओं को हर तरह का सहयोग मुहैया कराने की दिशा में ठोस शुरुआत किया गया .
उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक/ऐतिहासिक/धार्मिक पहचान फिल्मों के लिए उर्वर भूमि प्रतीत होती है.जिसका भरपूर दोहन अभी तक नही हुआ है.प्रेम का वैश्विक प्रतीक बनकर उभरे ताजमहल का यूपी में होना यहाँ की विशिष्टता को कई गुना बढ़ाने में सहायक है.जबकि बनारस,इलाहाबाद,मथुरा, वृन्दावन जैसे धार्मिक शहर अपने आप में पूरी परम्परा को समेटे हुए लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेते है.दो वर्ष पूर्व प्रयाग में हुए महाकुंभ की भव्यता को भला कौन भूला होगा! इन सबके अतिरिक्त समूचे एशिया में शांति और मानवता के प्रतीक गौतम बुद्ध के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण स्थल कपिलवस्तु,सारनाथ,कौशाम्बी,कुशीनगर की लोकप्रियता समूचे विश्व में स्थापित है.ऐसे में सिनेमा ही ऐसा माध्यम है,जो प्रदेश की इन विशेषताओं को फिल्मों के माध्यम से आम लोगों तक आसानी से पहुँचा सकती है. जिसमें अन्य कोई विधा एक सीमा से अधिक सफल नही हो सकती है.अखिलेश सरकार ने फ़िल्मी दुनिया को सूबे में अनुकूल माहौल प्रदान करने के लिए पिछले दो साल से ही प्रयासरत है.हेरिटेज आर्क,ट्रेवल मार्ट सहित ऐतिहासिक स्थलों का संरक्षण और रख रखाव की दिशा में सराहनीय कार्यों से सिनेमा-पर्यटन-निवेश के अंतर्संबंधो को मजबूत करने की पहल को यूपी सरकार की सफलता के रूप में देखा जा सकता है.
यूपी अभी भी जाति-धर्म के जकड़न में उलझा हुआ है.चुनावों के समय वोटो के ध्रुवीकरण को लेकर सामाजिक वैमनश्य खुल कर सामने आ जाता है.जिसका असर सामाजिक ताने-बाने के टूटन के रूप में दिखता है.पिछले आम चुनाव में यह बात बखूबी प्रमाणित भी हुयी.सूबे के गंगा-जमुनी तहजीब को बचाए और बनाये रखने में फिल्में अधिक मददगार हो सकती हैं. लेकिन इसका उचित लाभ अभी तक नही मिल पाया है. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में फिल्म बन्धु की वजह से मिलने वाले सम्मान ने सूबे की पहचान को देश-दुनिया में निखारने की जो पहल की है,उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. प्रति वर्ष लखनऊ में उत्तर प्रदेश की संस्कृति/पर्यटन/ऐतिहासिक धरोहर और साझी विरासत पर आधारित फिल्म फेस्टिवल की आयोजन वाली योजना सुनहरे भविष्य को जमीन पर उतारने वाली पहल है.जिसके माध्यम से देश का सबसे बड़ा सूबा फिल्म जगत में भी अपनी पहचान और भी सशक्त कर सकेगा.