रतन टाटा ने जब टाटा समूह की बागडोर हाथ में ली थी, तब इसे चलाने का काम कुछ क्षत्रपों के जिम्मे था, लेकिन जब टाटा बागडोर छोड़ रहे हैं तो क्षत्रप गायब हैं और समूह की कंपनियां चलाने के लिए मुख्य कार्य अधिकारियों (सीईओ) की एक कतार मौजूद है, जो समूह के मूल्यों, नीतियों और कॉर्पोरेट प्रशासन की लीक पर चलते हुए पूरी आजादी से काम करती है। टाटा बहुत पहले भांप चुके थे कि आर्थिक उदारीकरण के बाद देसी कंपनियों को दुनिया भर में जाना होगा और वैश्विक तौर-तरीके अपनाने होंगे। इसलिए वह दुनिया भर से सबसे अच्छी प्रतिभाओं को समूह में खींच लाए।
टाटा संस के निदेशक आर के कृष्ण कुमार की अगुआई में भरोसेमंद टीम ए की मदद से टाटा ने समूह का कायापलट कर दिया। उन्होंने सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और सीमेंट जैसे कारोबार बेच दिए क्योंकि वे समूह के मिजाज से मेल नहीं खाते थे। हालांकि उनके पूर्ववर्ती जेआरडी टाटा के करीब रहे कई क्षत्रपों को उनकी यह हरकत बेहद नागवार गुजरी। लेकिन समूह ने दूरसंचार, सॉफ्टवेयर, खुदरा और कार जैसे नए जमाने के कारोबारों पर जोर देना शुरू कर दिया।
टाटा ने कमउम्र सीईओ का एक जाल बुन दिया, जिसमें कई भारत से हैं और कई विदेश से। उनमें से सभी 50 साल से कम उम्र के हैं और अपनी-अपनी कंपनियों का कारोबार कामयाबी के साथ बढ़ा रहे हैं। इनमें कार्ल स्लिम भी शामिल हैं जो जनरल मोटर्स छोड़कर टाटा मोटर्स की कमान संभालने आए हैं। टाटा ने ही 36 साल के ब्रोतिन बनर्जी को टाटा हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी का मुखिया बनाया है। इसके अलावा टीसीएस के सीईओ एन चंद्रशेखरन 48 साल, टाटा पावर के अनिल सरदाना 52 साल, टाटा टेलीसर्विसेज के एन श्रीनाथ 49 साल और टाटा केमिकल्स के सीईओ आर मुकुंदन 44 साल
के हैं।
हालांकि टाटा को अपने करियर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। रूसी मोदी और अजित केरकर के साथ उनकी लड़ाई काफी समय तक सुर्खियों में छाई रही थी। लेकिन उन क्षत्रपों को समूह से बाहर करने और कमोबेश सभी कंपनियों की कमान भरोसे के लोगों को सौंपने में टाटा पूरी तरह कामयाब रहे।
समूह के सूत्र बताते हैं कि असली खिलाड़ी कृष्ण कुमार हैं। टाटा के उत्तराधिकारी की तलाश के लिए समिति बनाने में सबसे अहम किरदार उन्हीं ने अदा किया था। उन्होंने टाटा के निदेशकों के लिए सेवानिवृत्ति की उम्र तय करने में भी खासी मदद की ताकि रूसी मोदी जैसे किसी विवाद की भविष्य में पुनरावृत्ति न हो। जब टाटा स्टील के तत्कालीन चेयरमैन मोदी, ताज होटल्स चलाने वाली कंपनी इंडियन होटल्स के तत्कालीन चेयरमैन केरकर और टाटा केमिकल्स के दरबारी सेठ ने रतन टाटा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, उस वक्त कुमार ही थे, जिन्होंने तीनों क्षत्रपों को किनारे करने में टाटा की सबसे ज्यादा मदद की।
उसके बाद से टाटा और कुमार ने नौकरशाही मिजाज वाले टाटा समूह को 10,000 करोड़ डॉलर सालाना राजस्व कमाने वाले तेज रफ्तार कारोबारी घराने में बदल दिया, जिसकी आधी कमाई विदेश से आती है। बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ हाल ही में बातचीत में कृष्ण कुमार ने कहा था कि विलय-अधिग्रहण की समूह की आक्रामक नीति का फायदा अब मिल रहा है। उन्होंने कहा, ‘जगुआर-लैंडरोवर को देखिए। उसे खरीदने के लिए हमने जो भी रकम अदा की थी, उसकी पाई-पाई अब हम वसूल रहे हैं।’ 2012 में जेएलआर ने 12,900 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया।
टाटा केमिकल्स के मुकुंदन उपभोक्ताओं की बदलती मांग के मुताबिक उत्पादों पर जोर दे रहे हैं। टाटा स्टील के प्रबंध निदेशक एच एम नेरुकर अगले साल सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उनके वारिस की तलाश शुरू हो गई है और कंपनी के 44 साल के मुख्य वित्त अधिकारी कौशिक चटर्जी इस दौड़ में सबसे आगे हैं।
अगले साल जुलाई में कुमार भी टाटा संस से सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसलिए टाटा संस के नए चेयरमैन साइरस मिस्त्री को अपने तरीके से काम शुरू करने का मौका मिलेगा और अपनी टीम बनाने में मदद मिलेगी। टाटा तो मिस्त्री की मदद करेंगे, लेकिन समूह को नई ऊंचाई पर मिस्त्री ही ले जाएंगे।