मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठने के बाद स्वयं को उपकृत करने की राजनेताओं की प्रवृत्ति को सुप्रीमकोर्ट से बढ़ा झटका लगा है। अब उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला खाली करना होगा। सुप्रीमकोर्ट ने करीब दो दशक पुराने यूपी में पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवन पर्यन्त सरकारी आवास मुहैया कराने के नियम को गैर कानूनी ठहरा दिया है।
बंगला खाली करने के लिए दो महीने का समय
कोर्ट ने सरकारी संपत्ति को इस तरह बांटने पर तीखी टिप्पणियां करते हुए सरकारी बंगलों पर काबिज उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को 2 महीने के भीतर बंगला लौटाने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि अवैध रूप से काबिज रहने पर इन लोगों से किराया भी वसूला जाए।
कई मुख्यमंत्रियों को लगा झटका
सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश से जिन छह पूर्व मुख्यमंत्रियों को झटका लगा है उनमें मुलायम सिंह यादव, मायावती, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, राम नरेश यादव और एनडी तिवारी हैं। सुप्रीमकोर्ट के फैसले की गाज उन निजी ट्रस्टों और संस्थाओं पर भी गिरी है जिन्हें सरकार ने बिना नियम कानून के सरकारी बंगले आवंटित कर रखे हैं। कोर्ट ने ऐसे सभी आवंटन निरस्त कर दिये हैं। कोर्ट ने सरकार को जल्दी से जल्दी उन बंगलों को अपने कब्जे में लेने का आदेश दिया है। साथ ही उनसे उचित किराया भी वसूलने को कहा है।
फैसला यूपी के लिए इशारा दूसरे राज्यों पर
सुप्रीमकोर्ट ने यह फैसला तो सिर्फ उत्तर प्रदेश के मामले में सुनाया है लेकिन इशारा उन सभी राज्य सरकारों को है जो सरकारी संपत्ति को मनमाने ढंग से रेवडि़यों की तरह बांट रही हैं। ये फैसला न्यायमूर्ति एआर दवे, न्यायमूर्ति एनवी रमना व न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी की जनहित याचिका स्वीकार करते हुए सुनाया है। यह याचिका 2004 से लंबित थी और नवंबर 2014 में सुनवाई पूरी कर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री आवास आवंटन नियम 1997 को गैर कानूनी ठहराते हुए कहा कि यह नियम उत्तर प्रदेश (वेतन भत्ते और विभिन्न प्रावधान) कानून 1981 के विधायी कानून के अनुकूल नहीं है।