स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से प्रधानमंत्री का संबोधन भारतीय प्रजातंत्र की शानदार परंपरा है। इसकी तुलना किसी अन्य समारोह से नहीं हो सकती। फिर भी इण्डिया गेट में अभी सम्पन्न हुए समारोह को भी अच्छी शुरूआत माना जा सकता है। यदि बात किसी सरकार की उपलब्धियों तक सीमित होती तब शायद इसे विशिष्ट नहीं माना जा सकता था। क्योंकि केन्द्र व प्रदेश की सभी सरकारां द्वारा उपलब्धियों का प्रचार कोई नई बात नहीं है। इण्डिया गेट समारोह में सर्वाधिक महत्व जन भागीदारी को दिया गया। देश को यह संदेश दिया गया कि आमजन की जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से बड़े बदलाव किए जा सकते हैं।
सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर आयोजित इस समारोह में प्रधानमंत्री का संबोधन हुआ। यदि भविष्य में यह परंपरा का रूप ले तो यह प्रकारान्तर से सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही को तय करने वाली साबित होगी। इसे सरकार के वार्षिक रिपोर्ट कार्ड पेश करने के साथ ही जन सहभागिता बढ़ाने का अवसर भी बनाया जा सकता है। इसीलिए जहां प्रधानमंत्री के संबोधन का महत्व था वही ंदेश के विभिन्न हिस्सों में जन सहयोग से आए सुधारों की झलक भी प्रेरणादायक थी।
छत्तीसगढ़ की एक वृद्ध महिला ने शौचालय बनवाने के लिए अपनी बकरियां बेच दीं। उन्होंने पूरे गांव में माहौल बनाया। आज पूरे गांव में शौचालय हैं। खुले में शौच नहीं जाना पड़ता, जबकि जंगलों के बीच स्थित इस गांव में खासतौर पर महिलाओं, बेटियों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता था। इसी प्रकार देश में लाखों ग्राम पंचायत हैं लेकिन असम के एक गांव के लोगों ने अपने प्रयासों से सफाई को महत्व दिया। आज यह गांव एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बन गया। इसी प्रकार देश के सभी बड़े रेलवे स्टेशनों पर स्वच्छता के लगभग एक जैसे संसाधन हैं, लेकिन सूरत के जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों ने बीड़ा उठाया। परिणाम यह हुआ कि सर्वाधिक स्वच्छ रेलवे स्टेशन का खिताब सूरत को मिला।
यहां लालकिले की प्राचीर और इण्डिया गेट कार्यक्रम को जोड़कर भी देखा जा सकता है। 2014 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने देश में स्वच्छता अभियान चलाने का आह्नान किया था। जब इण्डिया गेट पर उसकी समीक्षा की गयी तो उत्साहजनक परिणाम दिखाई दिए। यह कार्य जन सहभागिता के बिना आगे नहीं बढ़ सकता था। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि स्वच्छता को लेकर जागरूकता बढ़ी है। बच्चों को इस अभियान का ब्राण्ड अम्बेस्डर बनाया गया है। सर्वाधिक जागरूकता उन्हीं में है। वह सफाई को लेकर अपने बड़ों को भी टोकते हैं। जागरूक पीढ़ी का निर्माण हो रहा है। वहीं इण्डिया गेट समारोह के माध्यम से यह भी बताया गया कि एक जैसे संसाधनों के बावजूद अनेक गांव, स्टेशन, संस्थानों ने बेहतरीन काम कर दिखाया। इससे अन्य लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। इसका मतलब है कि अतिरिक्त धन के बिना भी अच्छे कार्य हो सकते हैं। यह उन सांसदों के लिए भी सबक है जिन्होंने आदर्श गांवों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। वह सफाई पर ध्यान देते तो एक नहीं कई गांवों में सुधार दिखाई देने लगता।
इसी प्रकार इण्डिया गेट समारोह में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का विषय रखा गया। इस मामले में हरियाणा की स्थिति सबसे खराब मानी जाती थी, लेकिन प्रदेश सरकार के प्रयासों और जन सहयोग से स्थिति बदलने लगी है। मात्र एक-डेढ़ वर्ष में ही यहां लिंग अनुपात में सुधार हुआ है। बच्चियों की संख्या बढ़ी है। प्रदेश सरकार ने अपना काम किया। कन्या भू्रण जांच व हत्या पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया, प्रत्येक जिले में महिला थाने खुल गए। बच्चियों के लिए पांच सौ हेल्पलाइन हैं। वही समाज ने भी सहयोग किया।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ और शौचालय निर्माण का महत्व पहले इतना नहीं समझा गया। अन्यथा स्कूलों के भवन के साथ अनिवार्य रूप से शौचालय बनवाए जाते। यह कार्य पिछली सरकारों के समय हो जाता तो मोदी सरकार को इसे अभियान के रूप में चलाने की आवश्यकता ही नहीं थी। इस सरकार के कार्यकाल में चालीस लाख स्कूलों में शौचालयों का निर्माण हो गया। बेटियों के स्कूल छोड़ने की संख्या में बहुत कमी आयी है, क्योंकि पहले शौचालय न होने के कारण बड़ी बच्चियां स्कूल छोड़ देती थीं।
जिस प्रकार लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का संबोधन दलगत राजनीति से ऊपर होता है उसी प्रकार स्वच्छता, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, भ्रष्टाचार मुक्त शासन आदि को भी राजनीति से ऊपर मानना चाहिए। इण्डिया गेट समारोह के संयोजकों ने इस तथ्य का भी ध्यान रखा होगा। यही कारण था कि गैर भाजपा शासित राज्यों के भी अच्छे कार्यों को दिखाया गया। इसी प्रकार प्रधानमंत्री का संबोधन भी दलगत सीमा से ऊपर था। ये बात अलग है कि जब वह सरकार की उपलब्धियां बताते हैं तो दो वर्ष पहले वाली संप्रग सरकार से बिना कहे तुलना भी हो जाती है। इसके राजनीतिक अर्थ निकाले जाते हैं। यह स्वाभाविक भी है।
नरेन्द्र मोदी जब कहते हैं कि भ्रष्टाचार पर लगाम कसकर छत्तीस हजार करोड़ बचाए हैं। तो संप्रग सरकार से तुलना अपरिहार्य हो जाती है। क्यांकि उस सरकार के प्रधानमंत्री खुद भले ईमानदार हों लेकिन अपनी सरकार को ईमानदार बताने की स्थिति में वह कभी नहीं रहे। इसके विपरीत वह घोटालों का कीर्तिमान बनाने वाली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। ऐसे में वह इण्डिया गेट जैसे समारोह आयोजित करने का साहस नहीं कर सकते थे। इसके अलावा मनमोहन सिंह का आमजन से कोई संवाद नहीं था। ऐसे में वह स्वच्छता, ईमानदारी, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी कोई अपील करते भी तो उसमें जन सहभागिता नहीं मिलती।