भारत में अंगदान के बारे में प्रचलित मिथकों और गलत धारणाओं को दूर करने की जरूरत है।
नई दिल्ली : वर्ष 2016 के बाद से भारत में हृदय प्रत्यारोपण के मामलों में दस गुना वृद्धि हुई है। हाल के अनुमानों के मुताबिक, दान, पुनर्प्राप्ति और प्रत्यारोपण के बीच बेहतर समन्वय के कारण ऐसी स्थिति बन पायी है। कैडावेरिक आॅर्गन डोनेशन की राष्ट्रीय समन्वय एजेंसी-नेशनल ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट आॅर्गनाइजेशन (नॉट्टोे) द्वारा दिये गये आंकड़ों के अनुसार, भारत में पिछले दो सालों में लगभग 300 हृदय प्रत्यारोपण हुए हैं। उत्साहजनक बात यह है कि टियर 2 शहर भी प्रत्यारोपण केन्द्रों के रूप में उभरे हैं।
हृदय प्रत्यारोपण सर्जरी एक बेहद संवेदनशील प्रक्रिया है, जिसके दौरान क्षतिग्रस्त मांसपेशियों, धमनी या वाल्व वाले हृदय की जगह पर पूरी तरह से सक्रिय और स्वस्थ हृदय प्रत्यारोपित किया जाता है।
इस बारे में बताते हुए, डाॅ. के. के. अग्रवाल ने कहा, ‘ब्रेन डेड घोषित हो चुके किसी व्यक्ति के शरीर से निकाले गये अधिकांश अंग कई घंटे तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं, जब तक कि उन्हें किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित न कर दिया जाये। एक बार किसी व्यक्ति के शरीर से निकाला गया रक्त लंबे समय तक स्टोर किया जाता है और जरूरत पड़ने पर दूसरों को चढ़ाया जाता है। डांसर क्लेयर सिल्विया की कहानी सेलुलर मैमोरी की बात को स्थापित करती है कि स्मृति और चेतना कोशिकाओं में जीवित रह सकती है और अन्य व्यक्तियों तक स्थानांतरित हो सकती है। सिल्विया के शरीर में हृदय व फेफड़ों के प्रत्यारोपण के बाद उसमें डोनर के गुण विकसित होने लगे (पुरुष से महिला तक यौन वरीयताओं में परिवर्तन, लाल रंग की जगह हरे और नीले रंग की पसंद, चिकन और बियर का स्वाद विकसित होना)। हालांकि, ऐसा हर किसी में नहीं हो सकता है।’
अंगों को ठीक करने की प्रक्रिया को हार्वेस्टिंग कहा जाता है। यह अंग प्राप्तकर्ता में ट्रांसप्लांट किया जाता है, जिसे उस अंग की आवश्यकता होती है। अंगदान के दो प्रकार हैं-लाइव दान और मृत या कैडेवर दान।
डाॅ. अग्रवाल ने आगे बताया, ‘हालांकि आंकड़े बताते हैं कि हृदय प्रत्यारोपण की संख्या में वृद्धि हुई है, लेकिन इसके बारे में और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। लोगों को इस तथ्य के बारे में संवेदनशील होना चाहिए कि वे अंगदान के माध्यम से मृत्यु के बाद भी जीवित रह सकते हैं। अंगदान के बारे में मिथकों और गलतफहमी को दूर करने और संदेश को फैलाने की भी आवश्यकता है।’
एचसीएफआई के अनुसार –
आयु अंगदान के लिए बाधक नहीं है। यहां तक कि 80 वर्ष से ऊपर के लोग भी अंग और ऊतक दाता बन सकते हैं।
दान के लिए स्वास्थ्य सही होना भी कोई आवश्यक नहीं है। यहां तक कि जो धूम्रपान करते हैं, शराब पीते हैं या स्वस्थ आहार नहीं लेते हैं, वे भी अंग दान कर सकते हैं।
अंग और ऊतक दान शरीर को किसी भी तरह से डिफिगर नहीं करते हैं।
दुर्घटना के मामले में, डॉक्टर हमेशा पीड़ित के जीवन को बचाने की कोशिश करेगा। अंगदान को केवल एक विकल्प के रूप में माना जाता है, जब व्यक्ति कुछ परिस्थितियों के कारण मर जाता है।