आतंकवाद को समर्थन देकर भारत के लिए लगातार मुसीबत पैदा कर रहे पाकिस्तान को दुनिया के सामने बेपर्दा करने की एक और कोशिश गोवा में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान की जाएगी। उड़ी हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को लगातार उजागर कर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार ब्रिक्स के सदस्य देशों ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्र प्रमुखों सामने उसकी करतूतों को पेश करेंगे। हालांकि, मोदी के लिए कम से कम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग को पाकिस्तान पर दवाब बनाने के लिए तैयार करना आसान नहीं होगा। चिनफिंग और मोदी के बीच शनिवार को द्विपक्षीय वार्ता होगी जिसमें आतंकवादी संगठनों को फंड मुहैया कराने वाले और इन्हें पनाह देने वाले देशों पर कार्रवाई करने पर भी बात होगी। अपनी आक्रामक विदेश नीति के लिए पहचान बना चुके मोदी की कोशिश न सिर्फ आतंकवाद के मुद्दे पर इन देशों का समर्थन हासिल करने की होगी, बल्कि रूस व चीन के साथ द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को नई दिशा देने की भी होगी। ब्रिक्स बैठक के साथ ही गोवा में बिम्सटेक देशों का भी अलग से सम्मेलन है। जानकारों की मानें तो इन दोनों बैठकों में दक्षिण एशिया की राजनीति का प्रतिबिंब दिखाई देगा। दोनों बैठकों में भारत की कोशिश आतंकवाद के खिलाफ अपनी मुहिम में ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाने की होगी। शनिवार को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी की एक घंटे तक तमाम विषयों पर बातचीत होगी जिसमें सैन्य सामानों की खरीद के अलावा आतंकवाद ही दूसरा सबसे अहम विषय होगा। माना जा रहा है कि पुतिन के सामने मोदी रूस और पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे सैन्य सहयोग का मुद्दा खुलकर उठाएंगे। इसी तरह, जब मोदी और चिनफिंग द्विपक्षीय बैठक के लिए मिलेंगे तो उसमें चीन के करीबी राष्ट्र पाकिस्तान के आतंकी रिश्तों पर खुलकर चर्चा होगी। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भी यही कोशिश होगी कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर वे आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का समर्थन करें। ब्रिक्स के पांचों देशों की आंतरिक व आर्थिक स्थिति के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर कई विशेषज्ञों ने हाल में यह टिप्पणी की है कि इनमें से सिर्फ भारत की स्थिति ही हर दृष्टिकोण से मजबूत दिखती है। रूस और चीन आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील में आंतरिक राजनीतिक संकट गहरा रहा है। दूसरी तरफ, भारत में न सिर्फ एक बेहद मजबूत सरकार है बल्कि उसकी अर्थव्यस्था दुनिया के प्रमुख देशों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक, जितनी जरूरत हमें इन देशों की है, उससे ज्यादा इन चारों देशों को हमारी है। एक उदाहरण रूस का लिया जा सकता है। सैन्य बाजार में रूस की अहमियत खत्म हो रही है। जबकि भारत नए सिरे से सैन्य उपकरणों की खरीद शुरू कर चुका है। इसी तरह जब अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ चीन का कारोबार घट रहा है तो वह भारत के साथ अपने द्विपक्षीय कारोबार को किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होने देगा। आर्थिक मंदी से जूझ रहे ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका भी भारतीय बाजार में हिस्सा चाहते हैं और यहां से निवेश की भी उम्मीद लगाए हैं।