पाकिस्तान के पाले हुए आतंकवादियों ने जम्मू के उरी क्षेत्र में जो नापाक हरकत की थी, भारत ने उसका करारा जवाब दे दिया है। भारतीय सैनिक कमांडो सर्जिकल स्ट्राइक करते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुस गये और 38 आतंकवादियों को मार गिराया। अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन को भी ऐसे ही सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान के अंदर ही दबोचा था। भारत की इस कार्रवाई से पाकिस्तान तिलमिला गया है लेकिन दुनिया के किसी भी देश ने भारत की कार्रवाई का विरोध नहीं किया। सर्जिकल स्ट्राइक सेना द्वारा किया जाने वाला एक तरह का सरप्राइज अटैक होता है जिसका मकसद सटीक लक्ष्य को फोकस करके अचानक हमला करना होता है। भारत को विश्वसनीय सूचना मिली थी कि पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में सीमा से लगभग पांच किलोमीटर अंदर आतंकवाद के प्रशिक्षण शिविर लगे हैं।
इन शिविरों में आतंकवादी भी मौजूद हैं और ढेरों युद्ध सामग्री है। आतंकवादी भारत में घुसपैठ करने और आतंकवादी वारदात करने की रणनीति बना ही रहे थे कि रात साढ़े बारह बजे के करीब भारतीय सैन्य कमांडो हेलिकाप्टर की मदद से उन ठिकानों पर पहुंच गये और 38 आतंकवादियों को ढेर कर दिया। आतंकवादियों के सात ठिकाने भी तबाह कर दिये गये। भारत ने इस सर्जिकल अटैक की जानकारी भी पाकिस्तान को दे दी थी लेकिन वह कुछ तिकड़म करता या सोचता, उससे पहले ही भारत ने कार्रवाई पूरी कर ली। भारत की इस कार्रवाई का बांग्लादेश ने समर्थन किया। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के सलाहकार इकबाल चैधरी कहते हैं कि भारत ने अपनी धरती और संप्रभुता पर हमला करने वालों के खिलाफ कानूनी और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य कार्रवाई की है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले सैनिकों की देश भर में तारीफ की जा रही है। श्री नरेन्द्र मोदी भारत की जनता के बीच नए हीरो बनकर उभरे हैं। इससे पहले उन्होंने सार्क देशों की बैठक में न जाने घोषणा करके पाकिस्तान को विश्व के देशों के बीच अलग-थलग कर दिया था। मोदी के इस कदम के चलते ही सार्क सम्मेलन स्थगित करना पड़ा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सार्क शिखर सम्मेलन में शामिल न होने संबंधी फैसले का असर हुआ। यह देश की आम भावना के अनुकूल फैसला था। भारत के कदम का बांग्लादेश, भूटान, अफगानिस्तान, श्रीलंका ने समर्थन किया। सार्क सम्मेलन स्थगित हो गया। इसी के साथ यह भी संतोष का विषय है कि सरकार ने सिन्धु नदी जल और पाकिस्तान को तरजीही देश की श्रेणी में रखने वाले समझौते की समीक्षा शुरू कर दी है। पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए ये कदम तो उठाने ही थे। क्यांेकि उसकी आतंकी मानसिकता में सुधार की सभी संभावनाएं समाप्त हो गयी है। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भाषण से पाकिस्तान में जो बौखलाहट है, वह उसकी मूल प्रवृत्ति का ही प्रमाण है।
विश्व में क्षेत्रीय विकास व सहयोग की भावना से अनेक संगठन बने। ऐसे कई संगठनों ने बेहतर कार्य की मिसाल पेश की है। क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ाया गया, व्यापार की बाधाओं को दूर किया गया, एक दूसरे की कमी को पूरा करने का प्रयास किया गया। इन प्रयासों से सभी सदस्य देशों को लाभ हुआ, लेकिन इसी अवधि में दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन कोई भी उल्लेखनीय कार्य नहीं कर सका। इसकी प्रमुख बाधा पाकिस्तान रहा है। सुषमा स्वराज ने ठीक कहा कि यह मुल्क आतंकवाद का संरक्षण, पालन-पोषण करने के बाद उसका निर्यात भी करता है। जिन मार्गों व साधनों से संबंधित देशों के बीच व्यापार बढ़ाने के लिए होना चाहिए था, उसका प्रयोग आतंकवादी करने लगे। एक-दूसरे देशों के नागरिकों के आवागमन संवाद को सुगम बनाने का प्रयास भी बेकार साबित हुआ। बस सेवा, ट्रेन सेवा आदि सभी पर आतंकवाद की छाया रहती है।
आतंकी संगठनों ने इसका भी लाभ उठाया। पाकिस्तानी आतंकी संगठनों ने इस्लामी व नक्सली, माओवादी संगठनों तक संपर्क बना लिए हैं। नेपाल, बांग्लादेश, भारत तक इस्लामी व माओवादियों का नेटवर्क जुड़ रहा था। नेपाल और बांग्लादेश दोनों ने इस खतरे को समझा। उन्होंने इस पर नियंत्रण किया। यह राहत की बात है इस समय बांग्लादेश में आतंकवाद पर नकेल कसने वाली हसीना वाजेद की सरकार है। यदि खालिदा जिया की सरकार होती तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के आतंकी संगठनों का गठजोड़ अब तक फल-फूल रहा होता। अफगानिस्तान भी पाकिस्तान के कारण परेशान है। पाकिस्तान में चल रहे आतंकी संगठन अफगानिस्तान में हिंसा फैलाते हैं। इससे वहां की स्थिति वर्षों से सामान्य नहीं हो रही है। अफगानिस्तान में विकास व निर्माण करने वाले विदेशी अधिकारियों व कर्मचारियों पर भी हमले किए जाते हैं। उनका मनोबल तोड़ने का प्रयास किया जाता है। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तानी सैन्य बेस के निकट ही छिपा था।
जिस क्षेत्रीय संगठन मंे पाकिस्तान जैसा देश हो, उससे ज्यादा उम्मीद करना ही बेमानी था। आतंकवाद और आर्थिक सहयोग एक साथ चल ही नहीं सकते। भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को समझा। इसीलिए उन्होंने इस्लामाबाद में प्रस्तावित सार्क शिखर सम्मेलन में शामिल होने से इन्कार कर दिया। इस क्रम में रूस का फैसला अवश्य निराशाजनक रहा। उसको पाकिस्तान के साथ प्रस्तावित संयुक्त सैन्य अभ्यास को अस्वीकृत कर देना चाहिए था। गनीमत यह थी कि उसने पाक अधिकृत कश्मीर में सैन्य अभ्यास नहीं किया। अभ्यास को सीमित भी किया गया था। इसके अलावा रूस ने भारत के साथ भी सैन्य अभ्यास किया। लेकिन पाकिस्तान के साथ उसके सैन्य अभ्यास का प्रतीकात्मक महत्व था।