व्रत और त्यौहार सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला करवा चौथ व्रत पति के दीर्घ जीवन की कामना से किया जाता है। यह सुहागिनों का प्रमुख त्योहार है। पूरे देश में मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन सुहागिन स्त्रियां निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को चौथे पहर चन्द्र दर्शन पर, चांद को अर्घ्य देकर विधिपूर्वक पूजा करके पारण करती हैं। करवा चौथ के दिन सरगई का भी बहुत महत्व है। सरगई का सामान तथा करवे की पूजा का सामान प्रायः स्त्रियों के मायके से आता है। नियमानुसार करवा चौथ के दिन प्रातःकाल में भोर के तीन-चार बजे स्त्रियां सरगई के तौर पर साधारण जलपान जिसमें फल, मिठाई, दूध, चाय इत्यादि होते हैं, करती हैं। इसके पश्चात निर्जल व्रत आरंभ हो जाता है, जो शाम को चंद्र दर्शन के पश्चात ही पूरा होता है।
करवा चौथ में गौरा पार्वती की पूजा की जाती है। करवे छोटे-छोटे मिट्टी के लोटे होते हैं, जिनमें टोंटी लगी होती है इसमें जल या चूरा व मिठाई रिवाजों के अनुसार भरकर रखी जाता है तथा लोटे को मिट्टी के दिया से ढककर उसके ऊपर पुआ (मीठी-मीठी पूड़ियां) व मिठाई रखी जाता है साथ में एक तांबे के लोटे में जल भर कर उसके ऊपर दीपक जलाया जाता है। इस संपूर्ण तैयार करवे को बया कहते हैं। अनेक जाति, धर्म के लोगों में मिट्टी की अपेक्षा करवे के रूप में चांदी या तांबे का लोटा इस्तेमाल किया जाता है चूंकि करवा सुहाग का व्रत होता है इसलिए जो पहला करवा लड़की के मायके से आता है, स्त्री जीवन-पर्यन्त उसी लोटे से करवा पूजती हैं। करवा चौथ के दिन स्त्रियां सांध्य होते ही नख-शिख तक श्रृंगार कर शादी का जोड़ा पहनकर नई नवेली दुल्हन की भांति तैयार होती हैं। पूजा के स्थान पर चौकी पर ऐपन (चावल और हल्दी का लेप) से चौक लगाकर गौरा जी की मूर्ति उस पर रखती हैं, चौकी के सामने चौक रंगोली लगाती हैं और उसके ऊपर दीपक जलाकर रखती हैं। करवे धोकर उनके ऊपर कलावा बांधती हैं और बीच में ऐपन से चित्रकारी करती हैं। इसके बाद करवों के ऊपर बये का सामान रखा जाता है। एक ऐसा ही बया गौरा-पार्वती का भी तैयार किया जाता है। सबसे पहले गौरा जी की पूजा की जाती है।
जल-ऐपन-रोली और फूलों से। फिर गौरा जी से बया मन्सवाया जाता है, अंजुलि में थोड़ा जल, रोली, चावल व ऐपन लेकर दूसरे हाथ की अनामिका उंगली डालकर बोलते हैं। ‘‘आद्ये-आद्ये कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि करवा चौथ का बया गौरा रानी मन्से’’ और यह कहकर पानी गौर के करवे के चारों ओर घुमाकर जमीन पर छोड़ देते हैं। इसके बाद अपना बया मन्सा जाता है। बया घर की बड़ी यानी सास, ननद, या भाभी मन्सवाती हैं। बया मन्सते वक्त स्त्रियां गौरा जी से प्रार्थना कर कहती हैं, ‘‘रानी का सा राज दीजो, गौरा का सा सुहाग दीजो, रानी पूजे राज को, बहू पूजे सुहाग को’’ इसके पश्चात गौरा जी की कथा कही जाती है। करवा चौथ की एक प्रचलित कथा है जो स्त्रियां इस व्रत में कहती सुनती हैं।
एक सात वर्ष की लड़की थी, उसके सात भाई थे, वह अपने घर में सबकी बड़ी दुलारी थी, उसका विवाह हो जाता है। पहला करवा चौथ मां के घर ही होता है। वह व्रत रखती है-निर्जल बिना खाए पिये। शाम तक वह भूख-प्यास से बहुत बेहाल हो जाती है। भाइयों को अपनी छोटी बहन पर दया आ जाती है वे जंगल में आग जलाकर सामने पेड़ पर चलनी लगाकर बहन को दिखाकर कहते हैं चांद निकल आया है, अर्घ्य देकर पानी पी लो। नासमझ बहन उस आग को चांद समझकर जल चढ़ा व पूजा कर पारण कर लेती है। बस उसका सुहाग खंडित हो जाता है। उसके ससुराल से खबर आती है उसका पति नहीं रहा।
वह रोती बिलखती ससुराल पहुंचकर मृत पति को देखती है। अचानक वह शक्ति स्वरूपा होकर मृत पति का सिर गोद में लेकर कमरे में जाकर बैठ जाती है और कहती है कि वह वर्ष भर करवा चौथ का इन्तजार करेगी और अगले वर्ष करवा चौथ लें गौरा मां से अपना सुहाग वापस मांग लेगी। समय बीतता जाता है और करवा चौथ पुनः आता है उस दिन वह निर्जल व्रत रखकर शाम को चांद निकलने पर पूजा करने बैठी। मां पार्वती यह सब वर्ष भर से देख रही थीं इसलिए उस दिन वे स्वयं उससे बया मन्सवाने आईं। जब पहली गौरा आई तो गौरा ने उस स्त्री से कहा कि ‘भूखी न रह सके, करवा दे, प्यासी न रह सके, करवा ले।’ स्त्री बोली गौरा मां यह कहो कि ‘ले सुहागिन करवा, दे सुहागिन करवा’ गौरा माता ने कहा। यह मैं नहीं मेरी दूसरी बहन कहेगी और चली गईं। इस प्रकार गौरा माता की आठ बहनें आईं और चली गईं फिर नौंवी गौरा, काली जी के रूप में आईं तब उस स्त्री ने उनके भव्य विकराल रूप से बिना डरे उनके पांव पकड़ लिए और करवा बदलने के लिए विनती की, इस पर गौरा मां ने उसकी भक्ति और प्रार्थना से प्रसन्न होकर उसे सुहागिन कह करवा बदला।
तभी तुरन्त उसके पति ने आंखें खोल दीं और कहा मैं तो बड़ी देर तक नींद में सोया रहा। इस प्रकार गौरा मां ने एक बाल विधवा का सुहाग अमर कर दिया। इसीलिए स्त्रियां मां की पूजा कर अपना सुहाग अमर करने का वर मांगती हैं। गौरा मां की पूजा करना सुहागिनों के लिए सौभाग्यशाली होता है महाभारत काल के समय में भी श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को करवा चौथ का व्रत और पूजन करने की प्रेरणा दी थी। मां की पूजा के फलस्वरूप ही महाभारत में अनेकों वीर मारे गये परंतु द्रोपदी के पांचों पतियों को कुछ नहीं हुआ और वे सब जीवित रहे और द्रोपदी सौभाग्यवती बनी रहीं। करवा चौथ का व्रत व त्योहार श्रद्धापूर्वक प्रेम भक्ति भाव से अनेक राज्यों में मनाया जाता है। किंवदंती है, जो कुंवारी लड़कियां यह व्रत करती हैं उन्हें जल्द ही सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है और वे सौभाग्य सुख प्राप्त करती हैं। मां गौरा सभी को अमर सुहाग प्रदान करें और सबकी मंगलकामना से किए गए व्रत से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।