नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी से अपनी जान छुड़ा ली है। यह भी तय है कि वह सार्वजनिक जीवन में बने रहेंगे। भाजपा का साथ छोड़ कर वो चुप-चाप घर नहीं बैठने जा रहे। ऐसे में प्रश्न यह है कि क्या अब वे अपने अगले कदम से अपनी जान सांसत में डालेंगे किसी और की?
नवजोत सिंह प्रखर व्यक्तित्व के धनी, प्रतिभावान, बहुआयामी, बहिर्मुखी, सपाट किन्तु व्यंग्यात्मक मृदुल वाणी के जबर्दस्त प्रभावशाली वक्ता, सिद्धांतवादी, अत्यंत भावुक किन्तु बेहद ईमानदार छवि के ऐसे राजनेता हैं जिसकी सानी, ऐसी कम आयु में कम ही देखने को मिलती है। यह कहना गलत न होगा कि वे बुद्धिमान भी हैं। किसी भी राजनैतिक दल के लिए वे धरोहर ही सिद्ध हो सकते हैं।
इतनी प्रतिभाओं के धनी नवजोत सिंह जब भारतीय जनता पार्टी से असंतोष लेकर निकल रहे हैं तो उसका कारण क्या है? यदि वे भारतीय जनता पार्टी जैसे दल में, जहां अन्य राजनैतिक दलों की अपेक्षा संगठनात्मक सत्ता का विकेन्द्रीकरण सबसे अधिक देखने को मिलता है, दबाव में थे तो अन्य राजनैतिक दलों में उनकी क्या स्थिति होगी? जहां पर सत्ता, संगठन के पास ना होकर किसी व्यक्ति के हाथ में केन्द्रित है।
नवजोत सिंह सिद्धू: सफल क्रिकेटर, सफल कमेंटेटर
आइए सिद्धू के बारे में थोड़ी जानकारी ले लेते हैं। नवजोत सिंह सिद्धू का जन्म 20 अक्टूबर 1963 को पटियाला में हुआ था। वे भारतीय क्रिकेट के बहुत ही उम्दा खिलाड़ी रह चुके हैं। वर्ष 1983 से 1999 तक वे भारतीय क्रिकेट का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे। दाएँ हाथ के वे सिद्ध और विश्वसनीय ओपनिंग बल्लेबाज़ थे। उनकी क्रिकेट में धैर्य और आक्रामकता का अद्भुत संयोग था। नवजोत सिंह सिद्धू ने 1983 से लेकर 1999 तक पूरे सत्रह साल क्रिकेट खेला। टेस्ट क्रिकेट में उन्होंने पहला मैच वेस्ट इंडीज़ की टीम के विरुद्ध 1983 के दौरान अहमदाबाद में खेला जिसमें वे सिर्फ़ 19 ही रन बना पाये। इसके बाद उन्हें 1987 के विश्व कप क्रिकेट की भारतीय टीम में शामिल किया गया। उन्होंने कुल पाँच में से चार मैच खेले और प्रत्येक मैच में अर्धशतक लगाया। पाकिस्तान के खिलाफ़ शारजाह में खेलते हुए 1989 में उन्होंने पहला शतक लगाया। ग्वालियर के मैदान पर 1993 में उन्होंने इंग्लैण्ड के विरुद्ध नॉट आउट रहते हुए 134 रन बनाये जो उनका एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मुक़ाबला मैच में सर्वश्रेष्ठ स्कोर था।
जैसा कि मैं पूर्व में कह आया हूँ वे खासे भावुक इंसान भी हैं, 1999 में उन्होंने अचानक ही क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। संन्यास की घोषणा के दौरान उन्होंने कहा भी कि एक क्रिकेट समीक्षक की टिप्पणी से आहत होकर वे क्रिकेट को अलविदा कह रहे हैं अन्यथा उनका खेल इतना बुरा नहीं था। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद पहले उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर क्रिकेट कमेंट्री करना आरम्भ किया। वे उत्कृष्ट कोटि के अंग्रेजी कमेंटेटर सिद्ध हुए। उनके द्वारा अंग्रेजी में कहे गए हिन्दी के जुमले निहायत पसंद किए गए। उनकी कमेंटरी प्रसिद्ध कमेंटेटर सुरेश सराया की तरह थी पर जीवंत थी। हर्ष भोगले उनसे कम व्यंग्यात्मक हैं। कहना ना होगा कि जिस प्रकार का उनका क्रिकेट था उनकी कमेंटरी उससे कम नहीं थी।
राजनेता और टीवी पर्सनैलिटी
इसी दौरान उन्होंने राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी और भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 2004 के लोकसभा चुनाव में अमृतसर से मैदान में उतारा। युवा नवजोत ने क्रिकेटर, कमेंटेटर के बाद नेता के रूप में अपनी तीसरी पारी की ओपनिंग की। इस युवा ने यहाँ भी सफलता हासिल की। वे अमृतसर से भाजपा की तरफ से लोकसभा में चुने गए। इसी दौरान अदालत ने उन्हें एक पुराने मामले में गैर इरादतन हत्या का दोषी पाते हुए तीन वर्ष की कैद की सजा सुना दी। सड़क दुर्घटना से जुड़े इस मामले को इस भावुक सिख ने गंभीरतापूर्वक लिया। सबने समझाया कि वह न्यायालय के इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय से स्थगन ले लें और लोकसभा सीट से त्यागपत्र ना दें किन्तु नवजोत ने किसी की ना सुनी और उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से जनवरी 2007 मे त्यागपत्र देकर, सर्वोच्च न्यायालय से निचली अदालत के निर्णय पर स्थगन आदेश लिया। उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दी गयी सजा पर रोक लगाते हुए फरवरी 2007 में सिद्धू को अमृतसर लोकसभा सीट से दुबारा चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी। उन्होंने दुबारा अमृतसर सीट से चुनाव लड़ा और सीधे मुकाबले में कांग्रेस प्रत्याशी व पंजाब के वित्त मन्त्री सुरिन्दर सिंगला को 77626 वोटों के भारी अन्तर से हराया। सिद्धू पंजाबी सिख होते हुए भी पूर्णतया शाकाहारी हैं।
सिद्धू राजनेता के रूप में भी बहुत सफल रहे। अमृतसर उन्हें बराबर लोकसभा में भेजता रहा। इधर सिद्धू को टीवी से भी आमंत्रण आने लगे। और वे अपने इस चौथे स्वरूप में भी सब के द्वारा सराहे गए।
भाजपा और सहयोगी अकाली दल से असंतोष
विगत 2014 के लोकसभा चुनावों में वह फिर भाजपा से अमृतसर सीट के लिए प्रबल दावेदार थे किन्तु भाजपा संगठन ने उनकी आकांक्षाओं का दमन करते हुए अरुण जेटली को वहाँ से अपना उम्मीदवार बनाया। अमृतसर से उनका टिकट कटना नवजोत को नागवार गुजारा। उन्होंने अरुण जेटली के पक्ष में चुनाव प्रचार नहीं किया और लगभग भाजपा से कटे-कटे से रहने लगे। जेटली वहाँ से कांग्रेस के कैप्टेन अमरिंदर सिंह के हाथों पराजित हुए। हालांकि, नवजोत सिंह ने भाजपा और उसके संगठन पर सीधे हमले तो नहीं किए किन्तु चोट खाए साँप की तरह वे और आक्रामक हो गए। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और खास कर प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर सिंह बादल हमेशा उनके निशाने पर रहे। इस बात की परवाह किए बिना कि प्रकाश सिंह बादल का शिरोमणि अकाली दल केंद्र में भाजपा का सहयोगी दल है, पंजाब में अव्यवस्था, बेरोज़गारी और मादक पदार्थों के प्रसार के लिए वे उसे ही बुरी तरह घेरते रहे। वे स्वयं को बादल के मुकाबले खड़ा कर के भाजपा के लिए पंजाब को जीतना चाहते थे। वे आगामी चुनावों में भाजपा को अकालियों से अलग देखना चाहते थे पर भाजपा के रणनीतिकारों को अभी अकालियों से टकराव की बात जँच नहीं रही थी। इसकी वजह से पार्टी और उनके बीच की खाई बढ़ती जा रही थी।
भारतीय जनता पार्टी और जनता से कटने के बाद वे अधिकांश समय टेलेविजन शूटिंग में ही लगाते रहे। उधर भाजपा ने इस प्रखर व्यक्तित्व को मनाने के प्रयास कम नहीं किए। उनकी ना-नुकुर के बाद भी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेजा पर नवजोत सिंह के मन में भरी खटास को यह पद दूर नहीं कर पाया।
पंजाब का अगला मुख्यमंत्री और ‘आप’
पंजाब के आगामी चुनावों में नवजोत सफल क्रिकेटर, सफल कमेंटेटर, सफल राजनेता, सफल टीवी पर्सनैलिटी के बाद अपने लिए सफल मुख्यमंत्री का ओहदा आँखों में सँजोये हुए हैं। यह उनकी आकांक्षाओं भरी पांचवीं वैविध्यपूर्ण पारी होगी। उधर केजरीवाल भी पंजाब में झाड़ू लिए सहानुभूति और वोट के लिए हर जंतर-मंतर, टोटका, मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे में तलाश रहे हैं। पहले उनके सहयोगियों ने स्वर्ण मंदिर के चित्र पर झाड़ू डाल दी, चारों ओर सब के द्वारा भर्त्सना हुई तो जाकर वहाँ थालियाँ साफ कर आए। थालियाँ साफ करने के बाद अब दिन-रात इस जमा-घटा में लगे हुए हैं कि वे तो उलटी स्पिन के माहिर हैं ही, सिद्धू जैसे सिद्धहस्त ओपनर के टीम में आ जाने से वे बॉलिंग और बैटिंग में अकाली और भाजपा को पटखनी दे ही देंगे।
आप को एक दृष्टांत बताता हूँ एक बार पाकिस्तान के विरुद्ध नवजोत और कपिल देव बल्लेबाज़ी कर रहे थे। अब्दुल कादिर बहुत ही ललचाई हुई फ्लाइटेड गेंदें नवजोत को इस उम्मीद में डाल रहे थे कि वे लालच में उन्हें लिफ्ट करेंगे और लॉन्गऑन या लॉन्गऑफ पर पकड़े जाएंगे। नवजोत उनकी हर गेंद को सुरक्षात्मक तरीके से निकाल देते थे। क़ादिर कहाँ मानने वाले थे उन्होंने फ्लाइट देना बंद नहीं किया। नवजोत कपिल देव के पास पहुंचे, उनके कान में फुस-फुसा कर अनुमति मांगी “पा जी (कपिल को वे बड़ा भाई मान कर पा जी ही कहते थे) चक दयाँ।“ यानि कि भाई साहब अनुमति दो तो इसे उड़ा दूँ। कपिल से स्वीकृति मिलने के बाद उन्होंने क़ादिर को कई बार बाउंड्री लाइन के बाहर फेंका। अब पंजाब की विकेट ही बताएगी कि उस पर केजरीवाल की स्पिन और ‘पा जी चक दयाँ’ की बैटिंग कैसी जमेगी, इस बार कपिल के स्थान पर संभावना है सलाह केजरीवाल की रहेगी।