मध्य प्रदेश. मध्यप्रदेश में एक अनोखा विरोध जारी है. 700 से अधिक पेड़ काटे जाने के विरोध में बड़ी संख्या में लोग एकजुट हुए हैं. मध्यप्रदेश के बालाघाट वैलगंगा नदी के किनारे सड़क बनाने के लिए पेड़ों को काटा जाना है. विकास के नाम पर कटते जंगल का मध्य प्रदेश के लोगों ने अपने अपने तरीके से विरोध किया. यह जंगल इतना गहरा है कि यहां से निकलने वाले रास्ते को डेंजर रोड़ कहां जाता है साथ ही इसे ऑक्सीजोन के नाम से भी जाना जाता है लेकिन अब सरकार घने जंगल को काटकर यहां रिंग रोड बनाने की तैयारी कर रही है.
लेकिन पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपक कर खड़े हो गए और इसी के साथ चिपको आंदोलन का वह इतिहास फिर से दोहराया गया. आपको बता दें 1973 उत्तराखंड के चमोली जिले में चिपको आंदोलन हुआ था. वृक्षों की कटाई को रोकने के लिए इसी तरीके से लोग पेड़ों से चिपक कर खड़े हो गए थे.
आज मध्य प्रदेश में भी पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लोगों ने यह विरोध किया है. सिर्फ इतना ही नहीं कुछ लोगों ने तो पेड़ों पर रक्षा सूत्र भी बांधे साथ ही पेड़ों के पास बांसुरी बजा कर विरोध किया. कुछ युवाओं ने पेंटिंग के जरिए पेड़ों को न काटने का संदेश दिया. एक छात्रा ने पेड़ को राखी बांधी उसका कहना है कि रक्षाबंधन आने वाला है और उसने शपथ ली है कि वह इन पेड़ों को नहीं कटने देगी. बालाघाट की पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष रमेश रंगलानी का कहना है कि हमारा विरोध सड़क या बाईपास बनाने को लेकर नहीं है बल्कि हमारा विरोध इन पेड़ों को काटे जाने पर है.
बता दे जिस जंगल को काटने का फैसला लिया गया है वहां हिरण से लेकर कहीं जंगली जानवर निवास करते हैं लेकिन वन विभाग ने रिंग रोड के निर्माण के लिए 3 हेक्टेयर में फैले 700 से अधिक पेड़ों को काटने की अनुमति दे दी है.
फिलहाल यह निर्णय लिया गया है कि सड़क निर्माण के लिए इन पेड़ों को काटा जाएगा लेकिन जिस तरीके से युवाओं द्वारा विरोध जताया जा रहा है यह देखने वाली बात होगी कि आगे सरकार इस पर क्या फैसला लेती है.