दिल्ली की केजरीवाल सरकार को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को प्रशासनिक मुखिया ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में सरकार की सात अपीलों पर केंद्र सरकार और उपराज्यपाल नजीब जंग को नोटिस जारी किया है।
जस्टिस एके सीकरी और एनवी रमन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब देने का समय देते हुए मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 15 नवंबर तक स्थगित कर दिया।
आप सरकार के तर्क
सुनवाई के दौरान पीठ ने केजरीवाल सरकार के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकीलों केके वेणुगोपाल, पीपी राव, गोपाल सुब्रहमण्यम, राजीव धवन, दयान कृष्णन और इंदिरा जयसिंह के भारी भरकम दल के इस आग्रह को मानने से इनकार कर दिया कि दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगाया जाए। उन्होंने कहा कि उप राज्यपाल को दिल्ली का प्रशासनिक मुखिया बनाने के फैसले से दिल्ली प्रशासनिक संकट का सामना कर रही है। इस फैसले ने दिल्ली की निर्वाचित सरकार को महज एक सिफारिशी निकाय में तब्दील कर दिया है।
उन्होंने कहा कि यदि उपराज्यपाल को कैबिनेट से सलाह लेने के लिए मना किया जा रहा है तो संसद ने दिल्ली में कैबिनेट का प्रावधान क्यों किया। सुब्रहमण्यम ने कहा कि उपराज्यपाल ने फैसले के बाद 400 फाइलों मंगवा लिया है और उनके निरीक्षण के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है जो उनमें आप सरकार द्वारा लिए गए प्रशासनिक निर्णयों में आपराधिकता तलाश रही है। उपराज्यपाल ने गुरुवार को 10 फाइलों में अनियमितताएं पाईं हैं। उन्होंने कहा मामले के लंबित रहते उपराज्यपाल को फाइलों पर कार्रवाई करने से रोक जाए। लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि वह रोज कोई न कोई आदेश पास करते रहेंगे तो क्या हम रोजाना उन्हें देखते रहेंगे।
केंद्र सरकार के तर्क
केंद्र ओर से अटार्नी जरनल मुकुल रोहतगी और सालिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने बेंच से आग्रह किया कि सभी विशेष अनुमति याचिकाओं को सीधे खारिज कर देना चाहिए क्योंकि उनमें लगाया शपथपत्र उप मुख्यमंत्री का है। उन्होंने कहा कि शपथपत्र में मुख्य सचिव के हस्ताक्षर होने चाहिए। अटार्नी ने कहा कि दिल्ली के केंद्र शासित प्रदेश होने की स्थिति के बार में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की पीठ चर्चित एनडीएमसी केस स्थिति साफ कर चुकी है। मामले में कुछ नहीं बचा है इसलिए इस मामले में दोबारा जाने की जरूरत नहीं है।
क्या है मामला
दिल्ली हाईकोर्ट ने 4 अगस्त को एक फैसले में व्यवस्था दी थी कि उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और उन्हें दिल्ली कैबिनेट से सलाह लेने की जरूरत नहीं है। गौरतलब है कि केजरीवाल सरकार ने गत सप्ताह सुप्रीमकोर्ट से अनुच्छेद 131 के तहत दायर मूल वाद वापस ले लिया था। इसमें दिल्ली को पूर्ण राज्य के रूप में घोषित करने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वह मूल वाद वापस लेकर हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर ध्यान केंद्रित करे।
संविधान पीठ को भेजने में दिक्कतें
इस दौरान आप सरकार के वकीलों ने कहा कि मामले को संविधान पीठ को भेजा जाए लेकिन कोर्ट ने कहा कि वह पहले इसकी प्राथमिक जांच करेंगे। जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि यदि यह मामला दिल्ली को केंद्र शासित राज्य होने से संबंधित है तो फिर इसे संविधान पीठ को भेजने की जरूरत नहीं होगी। क्योंकि नौ जजों की संविधान पीठ यह पहले से ही निर्णित किया जा चुका है दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश ही है। यदि मामले में कुछ और मुद्दे आते हैं तो फिर इसे संविधान पीठ को भेजा सकता है।