केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने जानवरों को मारने की इजाजत देने के लिए आज पर्यावरण मंत्रालय पर निशाना साधते हुए कहा कि वह हत्या की ‘लालसा’ को नहीं समझ सकतीं, लेकिन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस कदम का यह कहते हुए बचाव किया कि फसलों को बचाने के लिए राज्यों के आग्रह पर यह किया जाता है। महिला एवं बाल विकास मंत्री तथा पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका का यह बयान हाल ही में बिहार में नीलगायों के मारे जाने के बाद आया है। उन्होंने इसे ‘अब तक का सबसे बड़ा नरसंहार’ करार दिया। इस विवाद के बाद विपक्ष ने आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि सरकार के भीतर कोई तालमेल नहीं है।
मेनका ने कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ‘हर प्रदेश को लिख कर उन जानवरों की सूची प्रदान करने की इजाजत दे रहा है जिनको मारने के लिए केंद्र से अनुमति ली जा सके।’ उन्होंने कहा, ‘‘यह पहली बार हो रहा है। मैं जानवरों की हत्या के प्रति इस लालसा को नहीं समझ पाती हूं।’’
उधर, जावड़ेकर ने इस बात पर जोर दिया कि यह जानवरों की संख्या का ‘वैज्ञानिक प्रबंधन’ है और ‘खूंखार’ घोषित किए जानवरों को मारने की इजाजत विशेष इलाकों और समयावधि के लिए होती है। मेनका ने दावा किया कि केंद्र ने बिहार में नीलगाय, पश्चिम बंगाल में हाथी, हिमाचल प्रदेश में बंदर, गोवा में मोर और महाराष्ट्र के चंद्रपुर में जंगली सूअर को मारने की अनुमति दी। बिहार में नीलगायों को मारे जाने पर उन्होंने कहा कि यह उस वक्त हुआ जब किसी ग्राम मुखिया या किसानों ने इनको मारने का आग्रह नहीं किया था।
जावड़ेकर ने कहा, ‘‘मौजूदा कानून के तहत जब किसान बहुत अधिक समस्याओं का सामना करते हैं और उनकी फसलें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तथा जब राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती हैं तो हम (मारने की) इजाजत देते हैं और राज्य सरकारों के एक विशेष इलाके और समयावधि संबंधी प्रस्ताव को अनुमति प्रदान करते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह केंद्र सरकार का कार्यक्रम नहीं है। कानून ऐसा है।’’ विपक्ष ने आरोप लगाया है कि सरकार के भीतर आपसी तालमेल नहीं है।
जदयू प्रवक्ता आलोक अजय ने कहा, ‘‘मंत्रालयों के बीच तालमेल नहीं है। पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है। सभी मंत्रालय आपस में भिड़ रहे हैं। टीमवर्क का अभाव है।’’ राकांपा प्रवक्ता राहुल नरवेलकर ने कहा, ‘‘मंत्रालयों के बीच कोई सामंजस्य नहीं है, एक व्यक्ति उन पर चीजों को थोप रहा है। यह कुशासन की एक और मिसाल है।’’