पूरे देश को झकझोर कर रख देने वाले 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए गुलबर्ग सोसाइटी हत्याकांड में पिछले गुरुवार को विशेष एसआइटी अदालत ने 24 आरोपियों को दोषी करार दिया, जबकि 36 आरोपियों को बरी कर दिया. इस मामले में सजा का एलान आज किया जाना है. फैसला सुनाते हुए अदालत ने सभी आरोपियों पर लगाये गये साजिश के आरोप को भी खारिज कर दिया.
गुजरात के बहुचर्चित गोधरा कांड के एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसाइटी में भारी भीड़ ने हमला किया था, जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गये थे. बरी किये गये आरोपियों में भाजपा के मौजूदा निगम पार्षद बिपिन पटेल भी हैं जबकि विश्व हिंदू परिषद के नेता अतुल वैद्य उन 13 लोगों में शामिल हैं, जिन्हें हल्की धाराओं में दोषी करार दिया गया. जिस इलाके में गुलबर्ग सोसाइटी स्थित है, वहां के तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर के जी एर्डा और पूर्व कांग्रेस पार्षद मेघ सिंह चौधरी को भी कोर्ट ने बरी कर दिया.
11 को हत्या का कसूरवार ठहराया गया
विशेष एसआइटी अदालत के न्यायाधीश पी बी देसाई ने दोषी करार दिये गये 24 आरोपियों में से 11 को हत्या का कसूरवार ठहराया, जबकि बाकी को अन्य आरोपों में दोषी करार दिया गया. कुल 66 आरोपियों में से छह की मौत सुनवाई के दौरान हो चुकी है. सभी आरोपियों पर लगायी गयी आइपीसी की धारा 120-बी को हटाते हुए अदालत ने कहा कि इस मामले में आपराधिक साजिश का कोई सबूत नहीं है. साजिश के आरोप को हटाने से दोषियों की जेल की सजा की अवधि कम होगी. अभियोजन पक्ष हत्या के दोषी ठहराये गये 11 लोगों को मौत की सजा देने की मांग कर सकता है. हालांकि, पीड़ितों के वकीलों ने कहा कि वे हत्या के दोषियों के लिए उनकी मृत्यु तक जेल की सजा की मांग करेंगे.
सरकारी वकील ने कहा, मौत की सजा मांगेंगे : फैसले के बाद विशेष लोक अभियोजक आर सी कोडेकर ने कहा, ‘हम 11 आरोपियों के लिए मौत की सजा की मांग करेंगे, क्योंकि यह बर्बर अपराध है और अदालत से अनुरोध करुंगा कि वह इसे दुर्लभतम मामला माने. हल्की धाराओं में दोषी करार दिये गये 13 अन्य के लिए 10-12 साल की सजा मांगी जायेगी.’ साजिश के आरोप खारिज किये जाने पर कोडेकर ने कहा, ‘एसआइटी ने आइपीसी की धारा 120-बी के तहत सुनियोजित साजिश के आरोप लगाये थे, लेकिन साजिश के बाबत आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं थे और इसलिए हम इस पर आगे नहीं बढ़ सके. हम सबूतों के आधार पर काम करते हैं, भावनाओं पर नहीं.’
वकील बोले, फांसी की सजा नहीं मांगेंगे : पीड़ितों के वकील एस एम वोरा ने कहा कि वह अदालत की ओर से दोषी ठहराये गये लोगों के लिए मौत की सजा नहीं मांगेंगे. फैसले के बाद पत्रकारों से बातचीत में वोरा ने कहा, ‘अदालत दोषियों को मौत की सजा सुना सकती है, लेकिन हम इसके पक्ष में नहीं हैं. छह जून को हम अदालत से कहेंगे कि हम इन 11 दोषियों के लिए उनकी मृत्यु तक जेल की सजा चाहते हैं, क्योंकि हम मौत की सजा के पक्ष में नहीं हैं.’
तिस्ता ने स्वागत किया : फैसला आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने इसका स्वागत किया. उन्होंने कहा, ‘14 साल के संघर्ष के बाद मैं बस ये कह सकती हूं कि हम फैसले का स्वागत और आदर करते हैं और जब तक हम फैसले के अंतिम बिंदुओं को पढ न लें, मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकती.’ तीस्ता ने आगे कहा, ‘लोगों को यह अहसास नहीं होता कि ऐसे संघर्ष करने का मतलब क्या होता है. सबसे ज्यादा श्रेय तो जीवित बचे उन लोगों को जाना चाहिए, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी गवाही दी.’