बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमों मायावती पर अभद्र टिप्पणी करने वाले दयाशंकर को बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया लेकिन महिला सम्मान के नाम पर सडकों पर उतरे बसपा समर्थकों के निशाने पर भी बहन और बेटियां ही रही। दयाशंकर की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर बसपा समर्थकों ने जिस तरह की अभद्र नारेबाजी एक दिन पहले यूपी के हजरतगंज में की उसने दयाशंकर की महज 12 साल की बेटी को सदमे में डाल दिया। सड़कों पर उतरे बसपा समर्थकों ने दयाशंकर की बेटी और पत्नी को लेकर तख्तियों पर अभद्र टिप्पणियां लिखी हुई थी।
दयाशंकर की 12 साल की बेटी सदमे में
बसपा समर्थकों द्वारा ने दयाशंकर की पत्नी और बेटी को उनके सामने पेश होने को कहा जा रहा था। दयाशंकर से अलग रह रही उनकी पत्नी स्वाति का कहना है कि टीवी पर बसपा समर्थकों की नारेबाजी देखकर से उनकी 12 साल की बेटी बेहद डरी हुई हैं। उसकी हालत नहीं सुधरी तो उसे अस्पताल में भर्ती भी करना पड़ सकता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी में लेक्चरर रह चुकी स्वाति का कहना है कि ”मेरी बेटी का क्या गुनाह है जो उसे बसपा कार्यकर्ता गालियां दे रहे हैं। स्वाति ने आगे कहा कि ‘अगर ऐसे शब्द मायावती जी को दुखी कर सकते हैं तो, हम दुखी क्यों नहीं हो सकते।
एक खबर की माने तो आज से तकरीबन 15 साल पहले भी किसी नामी अख़बार में मायावती को लेकर लिखी गई एक खबर पर बवाल मच गया था। तब भी मायावती के समर्थकों ने अख़बार के दफ्तर से लेकर संपादक की नींद उड़ा दी थी।
उल्टा पड़ सकता है मायावती पर ध्रुवीकरण का दांव
सड़क पर मायावती के समर्थन में आये दलित समाज की भीड़ भले आगामी यूपी चुनाव के मद्देनजर मायावती को खुश कर रही हों लेकिन उनके समर्थकों की अभद्र भाषा यूपी में मायावती के सोशल इंजीनियरिंग के खेल की हवा निकाल सकते हैं। जाहिर है कि जिस तरह मायावती का गुस्सा दयानन्द पर कार्रवाई के बाद भी कायम है उसने चुनावों से ठीक पहले ध्रुवीकरण के खेल को भी सामने ला दिया है।
सूत्रों की माने जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल बसपा समर्थकों द्वारा किया गया उससे मायावती का समर्थन करने वाला ठाकुर और ब्राह्मणों का एक धड़ा भी नाराज है। क्योंकि मायावती अगर दलित सम्मान के नाम पर अपना दलित वोटबैंक साध रही है तो उसके हाथ से ब्राह्मण और ठाकुर वोटबैंक भी खिसक रहा है। खुद बसपा नेताओं नसीमुद्दीन, राम अचल रामभर, सुखदेव रामभर के कार्यकर्ताओं से कहा है कि वह इस मुद्दे को गांव-गांव तक ले जाएँ।
मायावती का समर्थक रहा है ब्राह्मण वोटबैंक
गौर करें तो उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी को हमेशा ब्राह्मणों और ठाकुरों का भी बड़ा समर्थन रहा है। 2007 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में 17 फ़ीसदी ब्राह्मणों ने ही मायावती को वोट दिया था। वहीँ साल 2009 में मायावती का ब्राह्मण वोटबैंक उससे छिटका तो वो हार गई। साल 2017 के चुनाव में भी मायावती ने ब्राह्मण वोटबैंक को साधने का पूरा इंतज़ाम किया है लेकिन ताज़ा घटनाक्रम में मायावती का दलित ध्रुवीकरण उनके लिए घातक हो सकता है।