बसपा सुप्रीमो मायावती के मिजाज में आज भी महारानियों जैसी ठसक और तानाशाहों जैसी बू की झलक आती है। अपने कार्यकर्ताओं को एक खास नजरिये से देखने और उनसे बर्ताव करने का इनका तरीका भी पहले जैसा ही है। उसका विरोध करने का साहस किसी में भी नहीं रहा है। जिसने भी ऐसा कुछ भी करने की कोशिश की, उसे अर्श से फर्श पर आने में जरा भी देर नहीं होती थी।
लेकिन अब ऐसा नहीं रह गया है। मायावती भले ही न बदली हों, लेकिन बसपाइयों में बदलाव आ गया है। अब वे मायावती की राजशाही मनमानी बर्दाश्त करने को तैयार नहीं जान पड़ रहे हैं इसलिए पहली बार इलाहाबाद मंडल के सिराथू विधान सभाई क्षेत्र में मायावती के फरमान के खिलाफ बसपाइयों ने बगावत का झंडा बुलंद किया है, वह भी बसपा के राष्ट्रीय महासचिव इंद्रजीत सरोज की मौजूदगी में। इसमें मायावती द्वारा सिराथू विधानसभा के लिए घोषित अधिकृत प्रत्याशी सईदुर्रब के विरोध में बसपाइयों ने जमकर नारेबाजी की। कुर्सियां चलीं और लातजूते भी। इस संघर्ष में कई बसपाई घायल भी हो गए। नतीजतन, सम्मेलन का बीच में ही स्थगित करना पड़ गया।
बताया जाता है कि इस विरोध की भनक सम्मेलन में मौजूद स्वयं इंद्रजीत सरोज को भी थी। खुद उनसे मिलकर लोगों ने विरोध जताया था, लेकिन अपने सुप्रीमो से यह सच बताने का साहस उनमें नहीं रहा। वजह, अपने किसी भी निर्णय का विरोध सुनने का माद्दा मायावती में कभी नहीं रहा है, न आज है। अतीत में हुई ऐसी तमाम घटनाएं इसकी मिसाल हैं कि पार्टी के जिस भी वरिष्ठ नेता ने ऐसा करने का दुस्साहस किया था, उसे तुरंत इसका खामियाजा भुगतना पड़ गया था। उसे अर्श से फर्श पर पटक दिया गया।