देश भर में जब किसी राज्य सरकार पर संकट आता है. तो दल-बदल कानून हमेशा चर्चा के केंद्र में होते है. हाल ही में जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक 22 विधायकों ने अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत कर दी थी. तब भी दल-बदल कानून की खूब चर्चा हुई थी. या फिर राजस्थान की मौजूदा परिस्थितियों में भी यह कानून खूब प्रासंगिक हो गया है. सचिन पायलट खेमे की दलील है कि उनके खिलाफ इस तरह की कार्रवाई या नोटिस नहीं दिया जा सकता है क्योंकि नियम के मुताबिक पार्टी व्हिप का उल्लंघन तभी माना जा सकता है जब विधानसभा की सत्र चल रही हो. जबकि स्पीकर का कहना है कि विधायकों को नोटिस जारी करना या फिर अयोग्य घोषित करने की प्रक्रिया को शुरू करना उनका संवैधानिक अधिकार है. और कोर्ट में इस दखलअंदाजी नहीं कर सकता. ऐसे में इस कानून को जानना बेहद जरूरी हो जाता है.
दरअसल, भारतीय राजनीति में विधायकों- सांसदों की खरीद-फरोख्त की खबरें और आरोप लगते रहते हैं. वहीं विधायक और सांसद भी अपने फायदे के हिसाब से भी ऐसे में पार्टी बदलते रहे हैं. ऐसे में राजनीति में भ्रष्टाचार का जड़ बनते इस प्रक्रिया को रोकने के लिए 1985 में दल-बदल कानून लाया गया.
इन हालातों में अयोग्य घोषित हो सकते है जनप्रतिनिधि:
1. नियम के मुताबिक यदि कोई सांसद या विधायक अपनी इच्छा से अपनी पार्टी को छोड़ देता है तो सदन से उसकी सदस्यता चली जाएगी.
2. यदि कोई सांसद या विधायक अपनी पार्टी छोड़कर किसी दूसरे दल में शामिल हो जाता है. ऐसे में जाहिर है
3. पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करते हुए यदि कोई सांसद या विधायक सदन में अपनी पार्टी के खिलाफ वोट करता है.
4. यदि कोई सदस्य पार्टी को बिना सूचना दिए सदन में वोटिंग के दौरान गैर-हाजिर रहता है.
5. यदि कोई मनोनीति सदस्य 6 महीने के अंदर पार्टी बदल लेता है.
अब सवाल उठता है कि सचिन पायलट सहित कांग्रेस के 19 बागी विधायक इनमे से किन नियमों के उल्लंघन के वजह से अयोग्य घोषित हो सकते है. तो फ़िलहाल अगर गौर करें तो सचिन पायलट सहित उनके कैंप के विधायकों के अयोग्य घोषित होने की स्पष्ट संभावना न के बराबर है. यही वजह है कि गुरुवार को उन्हें कोर्ट से राहत भी मिली है. लेकिन इस राहत के बावजूद शुक्रवार को राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का बयान सचिन पायलट खेमे की मुश्किलें बढ़ाने वाला है. सीएम गहलोत ने राज्यपाल से मिलकर जल्द ही विधानसभा के सत्र बुलाने की बात कही है. अगर वे ऐसा करते है तो सीएम गहलोत विश्वास/अविश्वास मत के अलावा किसी दुसरे कानून पर भी वोटिंग करवा सकते है. और इसके लिए पार्टी व्हिप जारी कर सकती है.
ऐसे में सचिन पायलट पार्टी व्हिप का पालन करने के लिए बाध्य होंगे. क्योंकि वो अपनी विधायकी खोना नहीं चाहेंगे. जैसा कि उन्होंने हाल ही में स्पष्ट भी किया है कि यदि उनकी विधानसभा से सदस्यता गई तो उनकी राजनीती भी ख़त्म हो जाएगी. लेकिन फिर भी अगर सचिन पायलट पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करते हुए यदि बिना कारन बताये अनुपस्थित होते है या सदन में सरकार के खिलाफ वोटिंग करते है. तो यह दल-बदल कानून के परिधि में आ जायेगा. इससे अशोक गहलोत तो मजबूत स्थिति में आयेंगे ही. पायलट सहित उनके कैंप के विधायकों की सदस्यता पर भी खतरा मंडराने लगेगा.