मंगलवार को पहली बार नई व्यवस्था के तहत मौद्रिक नीति की घोषणा की जाएगी। आरबीआई के नए गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता में गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक सोमवार को ही शुरू हो गई।
समिति दो दिन विचार-विमर्श के बाद तय करेगी कि वह इस बार विकास को ब़़ढावा देने के लिए दरों में कटौती जरूरी है या नहीं। जानकारों का कहना है कि खुदरा कीमतों के हिसाब से महंगाई और वैश्विक हालात को देखते हुए नीतिगत दरें मौजूदा स्तर पर ही रखे जाने की ज्यादा उम्मीद है। हालांकि कई जानकार यह भी मानते हैं कि आगामी महीनों में दरों में कटौती की जोरदार गुंजाइश है।
देश में यह पहला मौका होगा जब आरबीआइ गवर्नर के वीटो अधिकार के बगैर मौद्रिक नीति की घोषणा होगी। यानी समिति के सदस्य जो तय करेंगे, उसके मुताबिक ही अंतिम फैसला होगा। गवर्नर का वोट भी सामान्य सदस्यों की तरह होगा। जब सदस्यों के बीच टाई होगा तो आरबीआई के गवर्नर का वोट निर्णायक होगा। अब तक की जो व्यवस्था थी, उसमें आरबीआई के गवर्नर एक समिति के सुझाव के आधार पर दरों का फैसला करते थे। लेकिन, अंतिम फैसला गवर्नर का ही होता था।
वैसे अगस्त, 2016 में महंगाई दर काफी नीचे रही। खास तौर पर दालों और सब्जियों के भाव में कमी का रख रहा। मानसून की स्थिति बहुत अच्छी रहने की वजह से उम्मीद है कि खाद्यान्न के भाव निकट भविष्य में तेजी से नहीं बढ़ेंगे। साथ ही औद्योगिक उत्पादन की स्थिति खराब है। देश में नए निवेश नहीं हो रहे हैं। बैंकों की तरफ से ऋण देने की रफ्तार बहुत सुस्त है। इस कारण उम्मीद की जा रही है कि इस बार नहीं हो तो अगले कुछ महीनों के भीतर आरबीआई दरों में कटौती जरुर करेगा।
वैसे मंगलवार को पेश होने वाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों के अलावा भी कई बातें होंगी। मसलन, सभी की नजर पटेल की उन कदमों पर होगी, जिनसे वे देश के बैंकिंग सेक्टर को नई दिशा देने की कोशिश करेंगे। यह देखना दिलचस्प होगा कि पटेल ने पिछले तीन वषर्षो के दौरान जिन समितियों की अध्यक्षता की और जिन समितियों की रिपोर्ट पूरी तरह से लागू नहीं हो पाईं, उन्हें अमल में लाने के लिए वह क्या कदम उठाते हैं।
केंद्र सरकार की वित्तीय साक्षरता को बढ़ाने के लिए वह किस तरह की घोषणाएं करते हैं। यह पहले ही तय हो चुका था कि इस बार प्रधानमंत्री जन धन योजना का अगला चरण शुरू किया जाएगा। ऐसे में पटेल गांव-गांव बैंकिंग सेवाएं पहुंचाने के लिए क्या करते हैं, इसकी भी प्रतीक्षा की जा रही है। इसी तरह से देश में एक मजबूत व सक्षम ऋण बाजार स्थापित करने के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के अधूरे काम को पूरा करने के लिए पटेल क्या कदम उठाते हैं, इसका भी सब इंतजार कर रहे हैं।
फंसे कर्जे (एनपीए) की समस्या से निपटने में बैंकों को सक्षम बनाने पटेल की एक बड़ी अहम जिम्मेदारी है। देखना होगा कि वह अब इस बारे में क्या कदम उठाते हैं।