नई दिल्ली। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा की चर्चा वैसे तो एनएसजी की सदस्यता और अमेरिकी कांग्रेस में मोदी के भाषण के लिए सुर्खियों में है लेकिन इस दौरान दोनों देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में हुए समझौते द्विपक्षीय रिश्तों की एक इबारत लिखने के संकेत दे रहे हैं। अमेरिका ने भारत को अपना सबसेमजबूत और सबसे बड़ा ऊर्जा सहयोगी देश बनाने की मंशा जताई है। इसके लिए वह भारत को वैसी तकनीकी का हस्तांतरण भी करने को तैयार है जिसे आज तक किसी दूसरे देश को नहीं दिया गया है।
अमेरिकी कंपनी की मदद से भारत में लगाए जाने वाले छह परमाणु रिएक्टर दोनों देशों के बीच होने वाले ऊर्जा सहयोग का एक हिस्सा मात्र है। अमेरिका ने जिस तरह की तकनीकी देने की मंशा जताई है, उससे आने वाले दिनों में भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए खाड़ी देशों का मोहताज भी नहीं रहेगा। अमेरिका भारत को गैस हाइड्रेट तकनीकी भी देने को तैयार है।
इसे भविष्य के लिए स्वच्छ ऊर्जा का एक बढ़िया स्त्रोत माना जा रहा है जिसकी सबसे बेहतरीन तकनीकी अमेरिका के पास है। इसे हासिल करने के लिए भारत लगातार कोशिश कर रहा था। इस तकनीकी को भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में ‘गेम चेंजर’ माना जाता है।
भारत अपनी जरूरत का 70 फीसद कच्चा तेल बाहर से आयात करता है।इसका 80 फीसद खाड़ी देशों से आता है। लेकिन अमेरिकी तकनीकी की मदद से अगर शेल गैस और गैस हाइड्रेट देश में निकलना शुरू हुआ तो भारत की निर्भरता कम होगी। साथ ही अमेरिकी मदद से भारत गैर पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़ा कारोबारी देश बनकर उभर सकता है।